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- सुभाषितमञ्जरी
E- यदि तेरा मन दया से रहित है तो सिद्धि प्राप्त करने के लिये व्यर्थ ही क्लेश उठाता है क्योकि दया के कारण सिद्धि नियम से प्राप्त होगी और यदि तेरा मन या से रहित है तो सिद्धि प्राप्त करने के लिये व्यर्थ ही क्लेग उठाता है क्योकि दया के विना तपश्चरणादि का क्लेश उठाने पर भी मिद्धि की प्राप्ति नही हो सकती ।।१६३।।
दयालु मनुष्य पर दोषोरोपण नही होता क्षिप्तोऽपि केनचिदोषो दयानॆ न प्ररोहति । तक्राइँ तृणवत् किन्तु गुणग्रामाव कल्पते ॥१६४।। भार्थी - जिस प्रकार छाछ मे गीली भूमि पर तृण नही जमता है उसी प्रकार दया से प्रार्द्र मनुष्य पर किसी के द्वारा लगाया हुआ दोष जमता नही है किन्तु गुण समूह का कारण होता है ।।१६४॥
निर्दय मनुष्य का तप तथा व्रताचरण व्यर्थ है तपस्यतु चिरं तीव्र व्रतयत्वतियच्छतु । निर्दयस्तत्फलैर्दीनः पीनश्च कां दयां चरन् ।१६५।। अर्थ - भले ही चिरकाल तक तीव्र तपश्चरण करो, व्रत करो और दान देप्रो परन्तु निर्दय मनुष्य उनके फल से रहित होता है और दया का प्राचरण करने वाला उनके फल से सहित होता है ॥१६॥