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सुभाषितमञ्जरो अधिकार से भ्रष्टजनो पर, निराश्रितो पर और रोगीजनों पर जो दया नही करते हैं, वे मनुष्य नहीं है ॥१०॥
. दया विश्वास का कारण है विश्वसन्ति रिपयोऽपि दयालो, वित्रसन्नि सुहृदोऽप्यदयाच्च । प्राणसंशयपदं हि विहाय स्वार्थमीप्सति ननु स्तनयोऽपि॥१९१।।
अर्था.- दयालु मनुष्य का शत्रु भी विश्वास करते हैं और निर्दय मनुष्य से मित्र भी भयभीत रहते है। स्तन पान करने वाला शिशु भी जहा प्राणों का संशय है ऐसे स्थान को छोड कर अपना भला करना चाहता है ॥१६१५
दया ही सार है संसारे मानुषं सारं कौलीन्यं चापि मानुपे । कोलीन्ये धार्मिकत्वं च धार्मिकत्वे च सद्दया ॥१२॥ अर्था.. ससार मे मनुष्य जीवन सार है, मनुष्य जीवन में कुलीनता सार है, कुलीनता मे धार्मिकता सार है और धार्मि कता मे समीचीन दया सार है ।।१६२॥
दया सिद्धि का कारण है मनो दयानुविद्ध चेन्मुधा क्लिश्नासि सिद्धये । मनो दयापविद्ध चेन्मुधा क्लिश्नासि सिद्धये ॥१६३॥