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सुभाषितमञ्जरी
अर्था - जो मुनियो के भोजन से अवशिष्ट पदार्थों का भोजन करता है वह जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कर्थिन समार के श्रेष्ठसुख को भोगकर क्रम मे निर्वाण के उत्तम सुख को प्राप्त होता है ।।।२०१॥
पात्रदान का फल
सौधर्मादिषु कल्पेषु भुज्जते स्वेप्सितं सुखम् । मानवाः पात्रदानेन मनोवाकायशुद्धितः ।२०२॥ तत एत्य सुजायन्ते चक्रिणो वार्धचक्रिणः । इक्ष्वाक्वादिषु वंशेषु पात्रदानफलान्नगः ॥२-३॥ भक्तिपूर्वपदान लक्ष्मीः रयाइोगसं गुता । अनादरप्रदानेन लक्ष्मीः भ्यागोगवर्जिता ॥२०४॥ अर्थः- मन वचन काय की शुद्धि पूर्वक पात्र दान देने ये मनुष्य सौधर्म आदि स्वर्गों में अपने अभीष्ट व को भोगने है और वहा से आकर इक्ष्वाकु आदि दशो में चक्रवर्ती तथा अर्धचक्रवर्ती होते है। भक्तिपूर्वक दान देने से ऐसी लक्ष्मी प्राप्त होती है जो अपने भोग मे आती है और अनादरपूर्वक दान देने से ऐसी लक्ष्मी मिलती है जो अपने भोग मे नहीं पाती ॥२०२, २०३, २०४।।