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सुभापितमञ्जरी सर्या . विनयी मनुष्य समस्त सपदानो के समूह को अपने वश कर लेता है सो ठीक है क्योकि विनय चिन्तामणि के समान क्या नहीं करता है ? ।।१५१।।
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माया निन्दा
माया नरक का कारण है अर्थातौं प्रचुरप्रपञ्चरचने ये वेञ्चयन्ते परान् नूनं ते नरकं ब्रजन्ति पुरतः पापिवजा दन्यतः । प्राणाः प्राणिषु तन्निबन्धनतया तिष्ठन्ति नष्टे धने यावान दुःखमरो नृणां न मरणे तावानिह प्रायशः॥१५२॥ अर्था:- धन आदि के विषय मे जो लोग बहुत भारी छल कपट करके दूमरे लोगो को ठगते हैं वे दूसरे पापियो से पहले निश्चित ही नरक जाते है क्योकि प्राणी धन को प्राणों का कतारण होने से प्रारण समझते हैं और धन के नष्ट होने पर मनुष्यों को जितना दुःख होता है उतना प्राय मरण में भी नही होता ॥१२॥