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सुभाषितमञ्जरो
परिग्रह निन्दा
परिग्रह से सुख नही होता नो सङ्गाज्जायते सौख्यं, मोतसाधनमुत्तमम् । सङ्गाच्च जायते दुखं, संसारस्य निबन्धनम् ।।१७।। अर्था:- परिग्रह से मोक्ष को प्राप्त कराने वाला उत्तम सुख 'प्राप्त नहीं होता किन्तु इसके विपरीत ससार का कारण दुःख उत्पन्न होता है ।।१७५।।
परिग्रह नरक का कारण है आरम्भो जन्तुघातश्च, कषायाश्च परिग्रहात् । जायन्तेऽत्र ततः पात: प्राणिनां श्वभ्रसागरे ॥१७६० शर्था:- परिग्रह से, प्रारम्भ, जीवघात और कषाय उत्पन्न होती है तथा उनके कारण जीवो का नरक रूपो सागर मे पतन होता है ।।१७६॥ .. परिग्रह प्रीति का कारण नही है यास्यन्ति निर्दया नूनं ये दत्वा दाहमूर्जितम् । हृदि पुंसां कथं ते स्यु स्तव प्रीत्यै परिग्रहाः ॥१७७/