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सुभापितमञ्जरी. अयं:- दात गिर गये, बाल सफेद हो गये वाणी मे रुकावट पा गई और पद पद पर शरीर गिरने को हो गया, फिर भी तृष्णारूपी पतिव्रता स्त्री साथ नही छोडती ॥२६९।।
___ इच्छा उत्तरोत्तर बढती है इच्छति शती सहस्र सहस्री चापि लक्षमीहते कर्तुम् । लक्षाधिपश्च राज्यं राज्ये सति सकलचक्रवर्तित्वम् । १७०।। अर्थ - सौ रुपये का धनी हजार चाहता है, हजार का धनी लाख करना चाहता है, लाख का धनी राज्य चाहता है और राज्य होने पर पूर्ण चक्रवर्तिपना चाहता है ।।१७०।।
__ क्लेश का सागर कौन तैरते हैं . . धन्याः पुण्यभाजस्ते तैस्तीर्णः क्लेशसागरः । जगत्संमोहजननी यै-राशाराक्षसी जिता ॥१७१॥ अर्था:-ससार को मोह उत्पन्न करने वाली प्राशारूपी राक्षसी को जिन्होने जीत लिया है वे ही पुण्यात्मा भाग्यशाली हैं और उन्होने क्लेशरूपी सागर को पार कर पाया है ।।१७१।। : सत् पीर असत् पुरुष को तृष्णा मे अन्तर पलितैकदर्शनादपि सरति सतश्चित्तमाशु वैराग्यम् । प्रतिदिनमितरस्य पुनः सह जरया वर्द्ध'ते तृष्णा ।।१७२।।