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सुभाषितमञ्जरी अर्थ:- सज्जन का चित्त तो एक सफेद वाल के देखने से ही शीघ्र वैराग्य को प्राप्त हो जाता है परन्तु असज्जन को तृष्णा प्रतिदिन स्वाभाविक वेग से बढती जाती है ॥ ११७२।।
आशारूपी पिशाच दु ख का कारण है। आसापिसायगहिरो जीवो पावेइ दारुणं दुक्खं । 'आमा जाहँ णियत्ता ताहँ णियत्ता सयलदुक्खा। १७३५ अर्थ - आशा रूपी पिशाच के द्वारा ग्रस्त जीव दारुण दुःख पाता है जिन्होने आशा को रोक लिया उन्होने समस्त दुखों को रोक लिया है ।।१७३॥
तृष्णा निवृत्त नहीं होती चक्रधरोऽपि सुरत्वं सुरोऽपि सुरराजमीहते कत्तुम् । सुरराजोऽप्यूर्ध्वगति तथापि न निवर्तते तृष्णा ॥१७४॥ अर्थ- चक्रवर्ती देव पद चाहता है, देव इन्द्र पद चाहता है और इन्द्र सिद्ध पद चाहता है किसी तरह तृष्णा निवृत्त नही होती ।।१७४।।