________________
सुभाषितमञ्जरो
माया मनुष्य को स्त्री बना देती है दौर्भाग्यजननी माया माया दुर्गतिवर्तनी । नृणां स्त्रीत्वपदा माया ज्ञानिभिस्त्यज्यते ततः ॥१५६॥ अर्थ- माया दौर्भाग्य को उत्पन्न करने वाली है, माया दुर्गति मे ले जाने वाली है, और माया मनुष्यो को स्त्रीपर्याय प्रदान करने वाली है इसलिये उसका त्याग क्यिा जाता है ।
माया के दोष स्त्रैणषण्ठत्वतैरश्चनीचगोत्रपराममाः । मायादोपेण लभ्यन्ते पुसां जन्मनि जन्मनि ॥१५७।। अर्थाः स्त्रीत्व, नपुसकत्व, त्रियञ्चगति, नीच गोत्र और पराभव ये सब मनुष्यो को माया के दोष से भवभव मे प्राप्त होते है ॥१५॥ मुनि मायारूपी लता को ज्ञानरूपी शस्त्र से छेदते है
आर्या मायावल्लिमशेषां मोहमहातरुवरसमारूढाम् । विषयविषपुष्पसहिता लुनन्ति मुनयो ज्ञानशस्त्रेण।१५८।। अर्थ - मोहरूपी महावृक्ष के ऊपर चढी हुई तथा विषयरूपी विष पुष्प के सहित मायारूपी समस्तलता को मुनि ज्ञानरूपी शस्त्र के द्वारा छेदते है ||१५६।।