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सुभाषितमञ्जरो अर्था.- भगवान का स्तोत्र करोडो पुण्यकार्यों के समान है जप करोडो स्तोत्रो के समान है, ध्यान करोडो जपो के समान है और क्षमा करोडो ध्यानो के समान है ॥१२४॥
शान्तात्मा का लक्षण कालुष्यकारणे जाते दुर्निवारे गरीयसि । नान्तः सुभ्यति कस्मैचिच्छान्तात्माऽसो निगद्यते॥१२॥ अर्था - कलुषता का बहुत भारी दुनिवार कारण उपस्थित होने पर भी जो अन्तरङ्ग मे किसी से क्षोभ नही करता वह शान्तात्मा कहलाता है । ॥१२५।।
क्षमा से कर्म क्षय होते है क्षमया क्षीयते कम दुःखदं पूर्वसञ्चितम् । चित्तञ्च जायते शुद्ध विद्वपभयवर्जितम् ॥१२६॥
अर्थ- क्षमा से पूर्व सचित दु खदायी कर्म क्षीण हो जाते है तथा हृदयद्वप और भय से रहित होकर शुद्ध हो जाता है।
तपस्वियो का रूप क्षमा है पातिव्रत्यं स्त्रिया रूपं पिकीनां रूपकं स्वरः। विद्यारूपं कुरूपाणां क्षमारूपं तपस्विनाम् ॥१२७॥