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सुभाषितमञ्जरो असमर्थ मनुष्य का क्रोध क्या कर सकता है ? यस्य रुष्ठे भय नास्ति तुष्टे नेव धनागमः । निग्रहानुग्रही न रतः स रुष्टः किं करिष्यति ॥१४६॥ अथ - जि ।के क्रुद्ध होने पर भय नही हाता और सतुष्ट होने पर धन की प्राप्ति नही होती इस तरह जिसमे निग्रह और अनुग्रह करने की क्षमता नही हैं वह क्रुध होकर क्या करेगा ? ॥१४६।।
किनको कुपित नही करना चाहिये ? सूपकारं कवि वैद्य चन्दिनं शस्त्रपाणिकम् । स्वामिनं धनिनं मखें मर्मज्ञं न च कोपयेत्।।१४७॥ अर्थ. रसोइया, कवि, वैद्य, बन्दी, हथियार हाथ मे लिए हुए, स्वामी, धनी मूर्ख अोर मर्म को जानने वाला, इतने मनुष्यो को कुपित नही करना चाहिये ।।१४७।।
स्त्री स्वार्थ से ही पति को स्मरण करती है शोचन्ते न मृतं कदापि वनिता यद्यस्ति गेहे धनं तच्चेन्नास्ति रुदन्ति जीवनाधंया स्मृत्वा पुनः प्रत्यहम् । तन्नामापि च विस्मरन्ति कतिभि सर्दिनैवीन्धवाः कृत्वा तद्दहन क्रियां निजनिजव्यापारचिन्ताकुलाः ॥१४८॥