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सुभापितमजरो कधि निन्दा क्रोध ही प्रथम शत्रु है उपजाति छन्द.
क्रोधो हि शत्रः प्रथमो नराणां, देहस्थितो देहविनाशहेतुः । अग्निर्यथा काष्ठगतोऽपि गूढः, स एव काष्ठं दहतीह नित्यम्
अर्थ.- क्रोध ही मनुष्यो का सबसे पहला शत्रु, है क्योकि वह शरीर मे स्थित होता हुआ ही शरीर के नाश का कारण है। जैसे जो अग्नि काष्ठ मे स्थित होकर छिपी रहती है, वही इस ससार मे निरन्तर काष्ठ को जलाती है ॥१३६।।
क्रोध अनर्थ का मूल है क्रोयो मूलमनर्थानां, क्रोधः संसारवर्धनः । धर्मक्षयकरः क्रोधस्तरमात्क्रोधं विवर्जयेत् ।।१३७॥ - अर्थ - क्रोध अनर्थों का मूल है, क्रोध ससार को बढाने वाला है और क्रोध धर्म का क्षय करने वाला है। इसलिये क्रोध को छोड देना चाहिये ॥१३७॥