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सुभाषितेमञ्जरी
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अर्था:- मनुष्य का आभरण रूप है, रूप का आभरण गुरण है, गुण का आभरेण ज्ञान है और ज्ञान का प्राभरण क्षमा है।
क्षान्ति मनुष्यो का हित करने वाली है शान्तिरेव मनुष्याणां मातेव हितकारिणी । माता कोपं समायाति क्षान्ति व कदाचन ।।१३१।। अर्था:- क्षमा ही मनुष्यो का माता के समान हित करने वाली है। विशेषता यह है कि माता तो कभी क्रोध को प्राप्त हो जाती है, परन्तु क्षमा कभी भी क्रोध को प्राप्त नही होती है।
क्षमा ही कार्य को सिद्ध करती है । पत्तमी कुरुते कार्य न क्रोधस्य वशं गतः । कार्यस्य साधिनी बुद्धिः सा च क्रोधेन नश्यति ।।१३२।। अर्था:- क्षमावान् मनुष्य जो कार्य करता है उसे क्रोधीमनुष्य नही कर सकता, क्योकि कार्य को सिद्ध करने वाली बुद्धि है, भौर बुद्धि क्रोध से नष्ट हो जाती है ।।१३२॥
क्षमा क्रोध को पराजिन करती है क्रोधयोधः कथंकारमहंकारं करोत्ययम् । लीलयैव पराजिग्ये क्षमया रामयापि यः ।।१३३।।