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सुभाषितमञ्जरो चरित्र का मूल मोक्ष महल की पहली सीढी और धर्म का बोज कहा है। ॥११६।।
सम्यक्त्वान् की पहिचान क्षमावैराग्यसन्तोषदयावान् विषयातिगः । कपायमदसंहारी सम्यक्त्वभूषणो भवेत् ॥११७।। अर्थ · जो क्षमा वैराग्य संतोष और दया से सहित है, विषयो से परे है तथा कपायरूपी मद का सहरण करने वाला है वही सम्यक्त्व रूपो आभूषण से सहित होता है ।
क्षमा प्रशंसा क्षमावान् का दुर्जन क्या कर सकता है ? मत्यदुर्गसमारूढं शीलप्राकारवेष्टितम् । चमाखङ्गयुतं नित्यं दुर्जनः किं करिष्यति ।।११८॥ अर्था - जो सत्यरूपी किले पर चढा हुआ है, जो शील रूपी कोट से घिरा हुआ है तथा जो सदा क्षमारूपी खड्ग से सहित है दुर्जन उसका क्या कर सकता है। ।।११८।।
अकारण द्वेषी को सतुष्ट करना कठिन है। निमिष मुदिश्य हि य प्रकुप्यति ध्र वं सतस्यापगमे प्रसीदति । अकारणव पि मनस्तु यस्य वै कथं जनं त परितोपयिष्यति