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सुभाषितमञ्जरी श्लोकसंग्रहकर्ता मुनि अजितसागर
अनुवादकर्ता पं० पन्नालालजी साहित्याचार्य (सागर)
जिनेन्द्रस्तुतिः
मालिनीच्छन्द
असितगिरिसमं स्यात्कज्जलं सिन्धुगडे
सुरतरुवरशाखा लेखनी पत्रमुर्वी । यदि लिखति गृहीत्वा शारदा सर्वकालं
तदपि तव गुणानामीश पारं न याति ॥१॥ अर्थ-हे नाथ | यदि समुद्र रूपो पात्र मे नील गिरि के बराबर कज्जल हो, कल्प वृक्ष की उत्तम शाखा लेखनी हो, समस्त पृथ्वी कागज हो और सरस्वती उन सब को लेकर स्वय सदा लिखती रहे तो भी आपके गुणो के पार को प्राप्त नहीं होती अर्थात् आप अनन्त गुणो के भण्डार हो ॥१॥