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सुभाषितमञ्जरो नीतिज्ञ मनुष्य किनकी निन्दा नहीं करते है ?
रथाद्धताच्छन्दः स्वामिनं सुहृदमिष्टसेवकं मल्लभामनुजमात्मजं गुरुम् । मातरं च जनकं च वान्धवं दृपयन्ति नहि नीतिदिनः ।। अर्था:- नीति के जानने वाले मनुष्य, स्वामी, मित्र, इष्ट सेवक, स्त्री, छोटा भाई, पुत्र, गुरु, माता, पिता, और भाई की निन्दा नही करते ॥१७॥
मुनि निन्दा निगोद का कारण है मुक्त्वा दुःखशतान्युच्चैः सर्वासु श्वभ्रभूमिपु । निगोतेऽभिपतन्त्येते यतिदोपपगयणाः ॥१८॥ अर्थः- मुनियो के दोप खोजने मे तत्पर रहने वाले मनुष्य नरक की समस्त पृथिवीयो मे सैकड़ो दुःख भोगकर निगोद में पड़ते है ॥८॥
सम्यग्दर्शन प्रशंसा
सम्यग्दर्शन परम धर्म है दर्शनं परमो धर्मो दर्शनं शर्म निर्मलम् । दर्शनं भव्यजीवानां निवृतेः कारणं परम् ॥६६॥ अर्थ:- सम्यग्दर्शन परम धर्म है, सम्यग्दर्शन निर्मल सुख है