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सुभापितमञ्जरो
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सम्यग्दर्शन से मनुष्य तीर्थंकर होता है यतः वाहिनिर्गत्य चरित्या प्रास्तनाशुभम् । समदर्शनमाहात्न्यात्तीर्थनाथो भवेत्सुधीः ।।१०३।। अर्थ:- सम्यग्दर्शन के प्रभाव से भेद विज्ञानी प्राणी नरक से निकल कर तथा पहले के अशुभ कर्मों को खिपा कर तीर्थकर होता है ॥१.३॥
सम्यक्त्व के साथ नरक का वास भी अच्छा है सम्यस्त्वेन समं वासो नरकेऽपि वरं सताम् । सम्यक्त्वेन विना नैव निगासो राजते दिवि ॥१४॥ अर्थ - सम्यक्त्व के साथ सत्पुरुषो का नरक वास भी अच्छा है भोर सम्यक्त के बिना स्वर्ग का निवास भी शोभा नही देता ॥१०४॥
सम्यक्त्व से ही जन्म सफल है तस्यैव सफलं जन्म मन्येऽहं कृतिनो वि। शशाङ्कनिर्मलं येन स्वीकृत दर्शनं महत् ॥१०॥ भG - जिसने चन्द्रमा के समान निमल उत्कृष्ट सम्यग्दर्शन स्वीकृत किया है पृथ्वी पर मैं उसी कुशल मनुष्य के जन्म