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ONAMA
सुभाषितमञ्जरो और सम्यग्दर्शन भव्य जीवो के निर्वाण का कारण है ।।६।।
सम्यग्दर्शन रहित साधु निन्दनीय है दृन्टिहीनो भवेत्याधुः कुर्वन्नपि तपो महत् । दग्विशुद्ध सुरैमनिन्दनीयः पदे पदे ॥१०॥ अर्थ - सम्यग्दर्शन से रहित साधु महान तप करता हुआ भी गम्यग्दृष्टि देवो और मनुष्यो के द्वारा पद पद पर निन्दनीय होता है ॥१०॥
सम्यग्दर्शन सहित गृहस्थ प्रशसनीय है सम्यग्दृष्टिगृहस्योऽपि कुर्वन्नारम्भमञ्जसा । पूजनीयो भवेल्लोके नृनाकिातिभिः स्तुतः ॥१०१॥ अर्था.- सम्य दृष्टि मनुप्य रहस्थ होने पर भी तथा प्रशस्त प्रारम्भ करने पर भी लोक मे मनुप्यो और इन्द्रो के द्वारा पूजनीय एव स्तवनीय होता है ॥१०१।।
सम्यक्त्व के विना देव भी स्थावर होते हैं सम्यक्त्वेन विना देवा पार्तध्यान विधार ये । दिवच्युत्वा प्रजायन्ते स्थावरप्वत्र तरूलार ॥१०२॥ अर्ग:- सम्यवत्व के विना देव प्रार्तध्यान वर इसके फल स्वरूप स्वर्ग से च्युत हो स्थावर जोत्रो मे उत्पन्न होते है ।।