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सुभाषितमञ्जरी
मुनिराज वन्दनीय है महायोगेश्वरा धीरा मनमा शिरसा गिरा। वन्यास्ते साधनो नित्यं सुरैरपि सुवेष्टिताः ।।६४॥
जो उत्कृष्ट ध्यान के स्वामी है, धीरवीर है तथा देव भी जिन्हे निरन्तर घेरे रहते है ऐसे साधु मन से, शिर से और वाणी से वन्दनीय है ॥६३।।
मुनिपद का माहात्म्य न च राजभयं न च चोरभयं नरलोकसुखं परलोकहितम् । वरकीर्तिकरं नरदेवनुतं श्रमणत्वमिदं रमणीयतरम् ॥६५॥ अथं - यह मुनिपद अत्यन्त रमणीय है क्योकि इसमे न राजा का भय रहता है न चोर का भय रहता है किन्तु इसके विपरीत उत्तम कीत्ति को करने वाला है और मनुष्य तथा देवो के द्वारा स्तुत है ।।६।।
मुनि कैसे होते है परित्यक्तावृतिर्गीष्मे समाप्तनियमस्थितिः । विहङ्ग इव निःसङ्गः केसरीव भयोज्झितः अर्थ - बिगम्बर मुनि ग्रीष्म ऋतु मे छाया आदि को आवरण से रहीत होते है, आवश्यक कार्यो मे अच्छी तरह