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सुभाषितमञ्जरी तत्थार्थ के द्रष्टा गुरुप्रो के सत्य वचन दुर्लभ है ।।१०।।
गुरुप्रो के बिना तत्वज्ञान सभव नही है
उपजाति
बिना गुरुभ्यो गुणनीरविभ्यो जानाति तचं न विचक्षणोऽपि
पफर्ण पूर्णोज्जललोचनोऽपि दी विना परयति नान्धकारे अर्थ -गुण मागर गुरुयो के बिना विद्वान भी तत्व को नही जानता है सो ठीक ही है क्योकि अपने कानो तक लम्बे उज्जव नेत्रो को धारण करने वाला मनुष्य भी अन्धकार मे दीपक के बिना पदार्थ को नहीं देख पाता है ।।८१।।
गुरु ही मुक्ति को प्राप्त होते हैं
शार्दूलविक्रीडित अक्षस्तेनसुदुर्धरा अतिखला जीवस्य लुण्ठन्ति ये वृत्तज्ञानगुणादिरत्ननिचितं भाएड जगत्तारकम् । तान् संनय यतीश्वरा यमधनुचादाय मार्गे स्थिताः ध्नन्ति ध्यानशरेण येऽत्र सुखिनस्ते यान्ति मुस्त्यालयम् अर्था जो अतिशय दुष्ट इन्द्रिय रूपो प्रबल चोर, जीवो को सम्यक चारित्र तथा ज्ञान प्रादि गुग रूपी रत्नो से परिपूर्ण जगत् को तारने वाले पात्र को लूटते है उन्हे जो मुनिगज