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सुभापितमजरो
३६ जिन शासन की महिमा शामनं जिननापस्य भव खस्य नाशकम् । तस्यास्ति वातना यस्य स ती कृतिनां वर ॥८६।। अर्थ- जिनेन्द्र भगवान् का शासन सतार के दुवो का नाश करने वाला है। जिस पुरप के उम जिन शामन को वासना है वह कुशल एव बुद्धिमानो मे श्रेष्ठ है ।।८।।
जिन वाक्य सुखकारी है चन्द्रातपेन को दग्ध को मृतोऽमृतसेया। जैनवास्येन को नष्ट गुरुकोपेन को हत ॥१०॥ अधू. चादनी से कौन जला है ? अमृत पान से कौन मरा है ? जिन वाक्य से कौन नष्ट हुआ है ? और गुरु कोप से कौन मरा है ? ॥६॥
गुरुनिन्दानिषेधनम् . गुरु निन्दा का फल देवनिन्दी दरिद्रः स्याद् गुरुनिन्दी चतकी । स्वामिनिन्दी भवेष्टी गोत्रनिन्दी कुलनी ।।६१॥ अर्थ. देव को निन्दा करने वाला इन्द्रि होता है, गुरु की