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मुभाषितमञ्जरो दुख होता है, न राजा आदि को प्रणाम करना पडता है
और न भोजन वस्त्र, धन तथा स्थान प्रादि की चिन्ता करनी पडती है । इनके विपरीत ज्ञान की प्राप्ति होती है, लोक प्रतिष्ठा बढती है, शान्ति सुख मे प्रीति होती है और मरने के बाद मोक्ष आदि की प्राप्ति होती है । हे बुद्धिमानुजनो । चूकि मुनिपद मे ये गुण हैं इसलिये उसे प्राप्त करने का यत्न करो ॥६१॥
__दिगम्बर साधु क्या धारण करते है ? संतोष लोमनाशाय धृतिं च सुखशान्तये । ज्ञानं च तपसां वृद्धय धारयन्ति दिगम्बराः ॥६२॥ ' अर्था.- दिगम्बर साधु लोभ का नाश करने के लिये सतोष को, सुख शान्ति के लिये धैर्य को और तप की वृद्धि के लिये ज्ञान को धारण करते है ।।६२॥ ।
मुनि परिग्रह से रहित होते हैं अपि वालाग्रमात्रेण पापोपार्जनकारिणा । ग्रन्थेन रहिता धीरा मुनयः सिंहविक्रमा ॥६३।। अर्था-धीरवीर एव सिंह के समान पराक्रमी मुनि, पा पका उपार्जन करने वाला बाल के अग्रभाग बराबर भी परिग्रह अपने पास नही रखते ॥६३।।