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सुभाषितमञ्जरी
१२ दुष्टात्मा व्रतहीनोहत्प्रतिष्ठायां न शस्यते ॥२४॥ अर्थ -- जो अत्यन्त बालक हो, अत्यन्त वृद्ध हो, अत्यन्त लम्बा हो अत्यन्त बौना हो, हीनाङ्ग हो, अधिकाङ्ग हो, बीमार हो, भ्रष्ट हो, जाति पतित हो, मूर्ख हो, कुरूप हो, मायावी हो, दोषदर्शी हो, अविद्वान हो, याचना करने वाला हो, क्रोधी हो, लोभी हो, दुष्ट प्रकृति का हो, और व्रतहीन हो, ऐसा व्यक्तिअर्हन्त भगवान् की प्रतिष्ठा मे अच्छा नही समझा जाता ।।२४।।
अनधिकारी मनुष्य के पूजक होने का फल ईदृशो यदि वाज्ञाना दयेर्चज्जिनपुङ्गवम् ।
देशो राष्ट्र' पुरं राज्यं राजा विश्वं विनश्यति ॥२५॥ अर्था - यदि अज्ञान वश ऐसा पुरुष जिनेन्द्र की पूजा करे तो देश राष्ट्र, नगर, राज्य और राजा सब नष्ट हो जाते है ।२४।
पूजन का काल और विधि त्रिसन्ध्यामाचरेत्पूजां चतुर्भक्तिः स्तवं तथा ।
उत्तमाचरणं प्रोक्तं जपध्यानस्तवान्वितम् ॥२६॥ अर्था - सिद्धभक्ति, पञ्च गुरुभक्ति, चैत्य. भक्ति और शान्ति भक्ति इन चार भक्तियो से संहित प्रातः