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सुभाषितमञ्जरी . १४ कृष्णगुरु आदि से बनी हुई धूप समर्पित करता है वह सुगन्धित देव होता है ॥२क्षा
पूजा नमस्कार और भक्ति का फल जिनेन्द्राणां मुनीशानां पूजनात्पूज्यतापदम् । उच्चैगोत्रं नमस्कराद्भक्ते रुपं च सुन्दरम् ॥३०॥ अर्था:- जिनेन्द्र भगवान और मुंनिराजो की पूजा करने से पूज्यता का पद जिनेन्द्र भगवान तथा मुनिराजों के नमस्कार करने से उच्च गोत्र और इन्हीं की भषित करने से सुन्दर रूप प्राप्त होता है ।॥३०॥
__ पूजा की प्रेरणा शतं विहाय भोक्तव्यं सहस्त्रं स्नानमाचरेत् ।
लक्षं त्यक्त्वा नृपाज्ञा च कोटिं त्यक्त्वा जिनार्चनम् अर्था- सौ काम, छोड़कर भोजन करना चाहिये, हजार काम छोड़कर स्नान करना चाहिये,'लाख काम छोड़कर राजा की आज्ञा का पालन करना चाहिये और करोड काम छोडकर जिनेन्द्र देव की पूजा करनी चाहिये ॥३१॥
पूजा से जन्म की सफलता पूजामाचरतां जगत्त्रयपतेः संघानं कुर्वतां