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सुभाषितमञ्रो उत्कृष्ट चिन्तामणि रत्न है अथवा बहुत कहने से क्या ? ससार मे जो जो सारभून वस्तु देखी जाती है वह सब धर्म से प्राप्त होती है ।
-: साधु प्रशंसा :विसृष्टसर्वसङ्गानां श्रमाणानां महात्मनाम् । कीर्तयाभि समाचार दरित होईनक्षमम् ।।५३।। अर्थ - मै सर्व परिग्रह के त्यागी महात्मा साधुनो के ममीचीन आचार का कीर्तन करता हूँ क्योकि सद् गुरुवो का गुण कीर्तन सर्व पापो को नष्ट करने में समर्थ है ॥५३॥
कौन क्या चाहता है ? मक्षिका व्रणमच्छिन्ति नमिच्छन्ति पार्थिवा. नीचा कलहमिच्छन्ति शान्तिमिच्छति साधव ।।४।।
मक्खिया घाव चाहती है, राजा धन चाहते है, नीच कलह चाहते है और साधु शान्ति चाहते है ॥५४॥
साधु दर्शन का फल साधूनां दर्शनं पुण्यं तीर्थभूता हि साधन । तीर्थ फलति कालेन सद्यः साधुसमागम.. ॥५५।।