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सुभाषितमञ्जरी अत्यन्तविशदा कीर्ति स्तवनाच्च जगत् त्रये ।
जायते धीमतो धर्मादन्यद्वा यच्च दुर्घटम् ॥५०॥ म्यर्थ - जिनेन्द्र देव का स्तवन करने से बुद्धिमान मनुष्य की तीनो लोको मे अत्यन्त उज्वल कीर्ति फैलती है तथा धर्म के प्रभाव से और भो असभव कार्य सभव हो जाते है ।५०।
गार्दूल विक्रीडितम् रम्यं रूपमरोगता गुणगणा कान्ता कुरङ्गीदृश । सौभाग्यं जनमान्यता सुमतय' संपत्तय कीर्तय । वैदुष्यं रतिरुत्तमेन गुरुणा योग सहायः सुखं धर्मादेव नृणां भान्ति ह्यनिशं धर्मे मतिर्दीयताम् ॥५१॥ अर्थ · मनुष्यो को सुन्दर रूप, निरोगता, गुणसमूह, मृगनयनी स्त्रिया, सौभाग्य, लोक मान्यता, सद्बुद्धि, सम्पत्ति कोति, पाण्डित्य, प्रीति, उत्तम गुरु का सानिध्य सहायता, और सुख धर्म से ही प्राप्त होते है इसलिये निरन्तर धर्म मे ही बुद्धि दीजिये ॥५१॥ कौ वशीकरणं धर्मो धर्मश्चिन्तामणि परः। उक्तेन बहुना किं वा सारं यद् यच्च दृश्यते ॥५२॥ अर्था - धर्म ही पृथ्वी पर वशी करण मन्त्र है धर्म ही