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सुभाषितमञ्जरी अर्था-साधुअो का दर्शन करना पुण्य है, क्योकि साधु तीर्थ स्वरूप है, अथवा तीर्थ से बढकर हैं, क्योकि तीर्थ तो कालान्तर मे फल देता है परन्तु साधुओ का समागम शीघ्र ही फल देता है ॥५५।।
गुरु ही पृथ्वी के रक्षक हैं गुरवः परमार्थेन यदि न स्युर्भवादृशाः । अधस्ततो धरित्रीयं ब्रजेन्मुक्ता धरैरिव अर्थ- गुरुयो से भक्त कहते हैं कि यदि वास्तव मे आप जैसे गुरु न हो तो यह पृथ्वी पर्वतो से मुक्त हुई के समान नीचे चली जावे अर्थात जिस प्रकार पर्वतो से छोडी हुई कोई वस्तु नीचे जाती है उसी प्रकार गुरुयो से छोड़ी हुई पृथ्वी नीचे जाती है -चारित्र से भ्रष्ट हो जाती है ॥५६।।
साधु समागम से कुछ दुर्लभ नहीं है साधोः समागमाल्लोके न किञ्चिदुर्लभं भवेत् । बहुजन्मसु न प्राप्ता बोधिर्येनाधिगम्यते ॥५७॥ अर्थ.- साधु समागम से ससार मे कुछ दुर्लभ नही है क्योकि उससे, जो अनेक जन्मो मे प्राप्त न हो सकी ऐसी बोधि प्राप्त हो जाती है ।।५८।।