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सुभाषितमञ्जरी तीर्थानामभिवन्दनं विदधतां जैनं वचः शृण्वताम् ।। सद्दानं ददती तपश्च चरतां सत्लानुकम्पावता
येषां यान्ति दिनानि जन्म सकलं तेषां सपुण्यात्मनाम् अथं --जिनके दिन त्रिलोकी नाथ की पूजा करते हुए, सघ की पूजा करते हुए, तीर्थों की वन्दना करते हुए, जिनवाणी को सुनते हुए, समीचीन दान देते हुए, तपश्चरण करते हुए, और जीवद्या को धारण करते हुए अपना जीवन व्यतीत करते हैं उन्ही पुण्यात्माओ का जन्म सफल है ॥३२॥
जिनधर्म प्रशंसा प्रज्ञानियों के न जानने से जिन धर्म की हीनता नही होती
शार्दूलविक्रीडितच्छनद घूका न घुमणि विदन्ति क्रिमु वा क्यास्य प्रकाशो गतः । काकाः पूर्णविधु न जातु विदितः कान्तिर्गतो क्यास्य-किम् ।
भेका ीरनिधि च कूपनिलया निन्दन्ति निन्दास्य का नान्येऽज्ञा जिनधर्ममत्र विदिता स्तस्यास्ति का हीनता॥३३॥ अर्थ- यदि उल्ल संर्य को नही जानते है तो क्या इससे