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सुभाषितमञ्जरी पेय का पान करना चाहिये क्योकि धर्म के बिना दुख के ससर्ग से रहित सुख नही होता ।।४० ।
धर्म की महीमा धर्मयुक्तस्य जीवम्य भृत्यः कल्पद्र मो भवेत् । चिन्तामणिः कर्मकरः कामधेनुश्च किङ्करी ॥४१॥ अर्थ धर्म सहित जीव का कल्प वृक्ष सेवक है, चिन्तामणि किङ्कर है और कामधेनु किङ्करी है ।।४।।
धर्मात्मा मनुष्य का अल्प जीवन भी अच्छा है वरं मुहूर्तमेकं च धर्मयुक्तस्य जीवितम् ।
तद्धीनस्य वृथा वर्ष कोटीकोटीविशेषत ॥४२ अर्थ- धर्म सहित मनुष्य का एक मुहुर्त का जीवन भी अच्छा है और धर्म रहित मनुष्य का कोटिकोटी वर्ष का जीवन भी व्यर्थ है ॥४२॥
धर्म ही जीवन है जीवन्तोऽपि मृता ज्ञेया धर्महीना हि मानवाः ।
मृता धर्मेण संयुक्ता इहामुत्र च जीविना ॥४३॥ अy - यथार्थ मे धर्म से रहित मनुष्य जोवित रहते हुए भी मृत जानने के योग्य है और धर्म से सहित मनुष्य मर