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सुभाषितमञ्जरी जिनेन्द्र भगवान् की अर्चा करना पुण्य वर्धक पूजा है, और स्वर्ग तथा मोक्ष की प्राप्ति होना पूजा का फल है ।।१८॥
पूजा करने का अधिकारी अकुण्डगोलकः श्राद्धः शोचाचमनतत्परः । पितृमातृसुहद्वन्धुभार्याशुद्धो निरामयः ॥१६॥ अर्थ- जो कुण्ड' और गोकल २ न हो जो श्रद्धा गुण से सम्पन्न हो, जन्म मरण सम्बन्धी शौच को दूर करने मे . तत्पर हो, पिता माता मित्र भाई और भार्या से ,शुद्ध हो तथा निरोग हो वही पूजा का अधिकारी है ॥१६॥
शुचिः प्रसन्ननो गुरुदेवभक्त्तो दृढ़वतः सत्वदयासमेतः दक्षः पटु र्वीजपदावधारी जिनेन्द्रपजासु स एव शस्तः ।२०। अर्थ:- जो पवित्र हो, प्रसन्न हो, गुरु और देव का भक्त हो अपने व्रत मे दृढ रहने वाला हो, धैर्य और दया से सहित हो, समर्थ हो, चनुतु हो, और बीजाक्षर पदो का अवधारण करने वाला हो वही पुरुष जिनेन्द्र भगवान् को पूजा मे उत्तम माना गया है ।।२०।।
१ पति के न मरने पर अर्थात् जीवित रहते हुए अन्य पुरुष के संपर्क से जा सन्तान होती है उसे कुण्ड कहते हैं २ और पति