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[ उन्नीस ]
निविमलसूरि और श्रीमद्-- (सहस्त्रकूट जिन नाम:प्रसिद्धि) .
__ बड़ा बड़ाई ना करे, बड़ो न बोले बोल । ... - हीरा मुख से कब कहे; लाख हमारा मोला ॥
तथापि जैसे हीरे का पानी हीरे का मूल्य बता देता है, वैसे प्राचरण व्यक्ति की "महानता का परिचय करा देता है। उस समय पाटण के नगर सेठ श्रीमाली दोसी तेजसी जैतसी थे। उन्होंने वहां सहस्त्रकूट जिनालय बनवाया था जिसका वर्णन श्रीमद् ने स्वयं सहस्त्रकूट स्तवन में किया है। . . . . ...
"श्रीमाली कुलदीपक जे तसी, सेठ सुगुण भण्डार । तस सुत सेठ शिरोमणी ते जसी पाटण नगर में दातार ।। तणे ए बिब भराव्या भावशु, संहस अधिक चौबीस ।
कीधी प्रतिष्ठा पूनमगच्छधरू भाव प्रभ सूरीश ।।' . 5. एक दिन श्रीमद् ने सेठ जी से पूछा कि आपमे 'सहस्त्रकूट के नाम तो गुरु मुख से सुने ही होंगे ? सेठजी ने अपनी अज्ञानता प्रकट की। किन्तु इससे उनके हृदय में सहस्त्रकूट के नाम को जानने को प्रबल जिज्ञासा पैदा हो गई । उन्होंने अपनी यह , जिज्ञासा उस समय के जाने माने विद्वान ज्ञानविमलसूरि के समक्ष रखी । ज्ञान विमल सूरि ने इन्हें फिर कभी बताने को कहा। एक दिन साही पोल स्थित श्री पाश्वनाथ मन्दिर में सत्तरभेदी पूजा के प्रसग को लेकर सूरिजी और श्रीमद् दोनों ही वहां पधारे । सेठजी भी वहाँ आए हुए थे। सूरिजी को देख कर. उनकी जिज्ञासा फिर जगी और उन्होंने अपना प्रश्न पुनः दोहराया । उत्तर देते हुए सूरिजी ने कहा कि उपलब्ध शास्त्रों में प्राय: इन नामों का उल्लेख नहीं मिलता। एक अधिकारी आचार्य के मुह से यह बात सुनकर श्रीमद् से नहीं रहा गया और उन्होंने इसका नम्र
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