________________
है। दान वही दे सकता है, जिसने अन्य आत्मा का कुछ मूल्यांकन किया है। अन्य जीवों के प्रति आत्मसमदर्शित्व के बिना दान की भावना असम्भव है।
दान के अनेक प्रकार हैं
(१) ज्ञानदान (२) अभयदान (३) सुपात्रदान (४) अनुकम्पादान (५) कीर्तिदान, इत्यादि ।
दूसरे जीव को सन्मार्ग में जोड़ना अथवा सन्मार्गगामी जीव को सन्मार्ग में स्थिर करना अथवा उसे सन्मार्ग में स्थिर रहने के लिए सहाय करना यह सबसे बड़ा दान है। तीर्थंकर परमात्मा के हृदय में सर्व जीवों के प्रति अपार करुणा होती है और इसी कारण वे उन्मार्गगामी भव्य जीवों को सन्मार्ग पर लाने के लिए धर्मदेशना का दान करते हैं। अपनी शक्ति का परहित में सदुपयोग करने से, उस शक्ति का व्यय नहीं होता है। बल्कि उस शक्ति का गुणाकार हो जाता है ।
(२) शील-शील अर्थात् सदाचार -ब्रह्मचर्य। शील धर्म के पालन के द्वारा इन्द्रियों पर नियन्त्रण प्राप्त किया जाता है । शील धर्म के पालन से मैथुन संज्ञा पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। निर्मल शील का पालन करने से देवता भी वशीभूत हो जाते हैं। शीलवान् पुरुष के आगे पराक्रमी दुष्ट देवों की शक्ति भी कुण्ठित हो जाती है। सुदर्शन श्रेष्ठी के निर्मल शील से कौन अपरिचित है ! उसके निर्मल शील के प्रभाव से सूली का सिंहासन बन गया और अर्जुनमाली जैसा पराक्रमी भी स्थिर बन गया।
प्रातःकाल में निर्मल शीलवती सतियों का नाम-स्मरण भी
शान्त सुधारस विवेचन-३