________________
मोक्ष का हो तो फिर उसे मोक्ष में जाने तक निरंतराय पद सहज रूप से बरते, वैसे ही संयोग मिलते हैं। बाकी, विषय के वश में तो अनंत जन्मों तक बर्ते हैं, उसमें एक ही जन्म स्वरूपज्ञान की जागृति समेत, विषय से छूटने में बीते तो अनंत जन्मों की कमी पूरी हो जाएगी।
लोकसंज्ञा के अनुसार जीनेवाले जगत् को जो प्रिय है, ऐसे इस विषय में ही अनंत जन्मों तक डूबकर, उसकी गारवता में मौज मनाई, लेकिन परिणाम स्वरूप निज आत्मऐश्वर्य, आत्मवैभव और आत्मसिद्धि खो दी, इतना ही जन्मों जन्म के सार के रूप में प्राप्त हुआ है। फिर विषय के प्रति वैराग्य लानेवाले शास्त्रों का पठन या विषय जीतने के लिए व्यर्थ कसरतें करने की ज़रूरत नहीं रहती। सिर्फ अनंत जन्मों का लेखा-जोखा 'जैसा है वैसा' दिखाई दे जाए तो विषय के प्रति सहज ही वैराग्य बरतेगा! संसार का मूल बीज विषय है, जिसका निर्मूलन होने पर संसार अस्त हो जाता है। सिर्फ विषय को जीतने से पाँचों महाव्रत आसानी से सिद्ध हो जाते हैं। संसार की वृद्धि करनेवाले और संसार में डूबोकर रखनेवाले निमित्त, 'ब्रह्मचर्य' द्वारा आसानी से गायब हो जाते हैं। परिणाम स्वरूप अपरिग्रही दशा साधी जा सकती है। विषय में कपट, असत्य, चोरी और विषय की वजह से होनेवाली भयंकर जीवहिंसा है-शुद्ध ब्रह्मचर्य पालन द्वारा इन सभी जोखिमदारियों से आसानी से मुक्त हो जाते हैं। ब्रह्मचर्य की ऐसी अद्भुत सिद्धि को समझने के बाद कौन उसे लुटाएगा?!
११. चारित्र्य का प्रभाव क्रमिक मार्ग में या फिर अक्रम मार्ग में, लेकिन चारित्र की नींव ही मोक्षपंथ का आधार है। जो चारित्र से स्ट्रोंग हो गया, वह जगत् जीत गया। अन्यथा विषय ने जिसे जीत लिया, वह जगत् हार गया। इसलिए ब्रह्मचर्य साधने के लिए तो सिर्फ ब्रह्मचर्य का परिणाम, और अब्रह्मचर्य के जोखिमों को सिर्फ समझना ही है। 'चारित्र' में लाने के लिए कुछ भी नहीं करना है। 'चारित्र' से संबंधित ज्ञान चारों ओर से समझ में फिट कर लेना है, परिणामतः उसका निश्चय ही उस वस्तु को वर्तना में लाता है!