Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन
७१.
++
++++
++++
++++++
++
++
++
+
अधिक महनीय है । सत्य के प्रति हार्दिक समर्पण भावना आत्मज्ञान समदर्शता विचरे उदय प्रयोग। और न्याय के प्रति अविचल आस्था ये दो उनके आन्त- अपूर्ववाणी परमश्रुत सद्गुरु लक्षण योग ।। रिक व्यक्तित्व के महान् तत्त्व है। विषमता में भी समता, पूज्य पुष्कर मुनि जी में ऐसे सद्गुरु के दर्शन मुझे हुए प्रतिकूलता में भी अनुकूलता, अखण्ड आत्मविश्वास, अपरा- और विशेष आनन्द मुझे यह हुआ कि देवेन्द्र मुनि जैसे जेय, धैर्य, जन-जन के प्रति स्नेह-सद्भावना ने उनके आंत. शिष्यरत्न को प्रेरणा प्रदान कर उनसे विपुल और श्रेष्ठ रिक व्यक्तित्व को अधिक गरिमामय बनाया है। साहित्य का सृजन करवाया, जिस मौलिक और श्रेष्ठ
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी के बम्बई महानगरी में साहित्य पर समाज गौरव का अनुभव करती है। चार वर्षावास हुए । मैं इन वर्षावासों में उनके सम्पर्क में पूज्य पुष्करमुनि जी को समर्पित करने हेतु एक आया । अनेक संस्थाओं के कार्य में अत्यधिक व्यस्त रहने अभिनन्दन ग्रन्थ तैयार हो रहा है, यह जानकर मुझे अपार के कारण जितना उनकी सत्संगति का लाभ मुझे लेना आनन्द हुआ। देवेन्द्र मुनि जी प्रस्तुत ग्रन्थ को तैयार कर चाहिए था उतना न ले सका। पर समय-समय पर मैंने रहे हैं, उसमें सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक सामग्री होगी यह मुझे उनके दर्शन किये और जो परिचय हुआ उससे उनकी आत्मविश्वास है। गम्भीर विद्वत्ता और आध्यात्मिक वृत्ति की मेरे अन्तर्मानस इस सुनहरे अवसर पर मैं पूज्य पुष्कर मुनिजी को पर गहरी छाप पड़ी । ध्यान और योग में वे सदा लीन नम्रता के साथ प्रणाम करता हूँ। और वे सदा समाज को रहते हैं । श्रीमद् राजचन्द्र ने सद्गुरु के लक्षण बताते हुए सर्चलाइट की तरह प्रकाश देते रहें-यही मंगल कामना लिखा है
ज्ञान की जगमगाती ज्योति
श्री दुर्लभजी केशवजी खेतानो, बम्बई उपाध्याय पुष्कर मुनिजी महाराज स्थानकवासी समाज महान् उपकार है। उन्होंने साधु-साध्वियों में तथा श्रावकके एक महान् सन्त हैं । मैंने उनके अनेक बार दर्शन किये समाज में जो ज्ञान के संस्कार प्रदान किये हैं, उन्होंने स्वयं गहराई से कई विषयों पर उनसे वार्तालाप भी किया। ने विराट साहित्य का सृजन किया और विद्वान् शिष्यों के उनकी सर्वप्रथम विशेषता है कि वे महान जिज्ञासु हैं। द्वारा प्रेरणा देकर विराट् साहित्य का निर्माण करवाया। कोई भी नयी बात जानने के लिए वे सदा तैयार रहते हैं। वह साहित्य बड़ा ही अद्भुत है, प्रेरणादायी है । मैंने मुनि मैंने देश-विदेश की अनेक यात्राएँ की। जब भी मैंने अपने श्री जी के कुछ साहित्य को पढ़ा है और दो-तीन पुस्तकों अनुभव सुनाये, तब मैंने देखा कि वे एकाग्रचित्त से उन के मैने गुजराती में अनुवाद भी किये हैं । मैं मुनि श्री जी बातों को ध्यान-पूर्वक सुनते रहे । और जो बातें उपयोगी के साहित्य से बहुत प्रभावित हुआ हूँ। लगीं उन बातों को आपश्री ने नोट भी की। यह वृत्ति मुझे हार्दिक आल्हाद है कि ऐसे महान् उपकारी, ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति में नहीं होती। उसमें यह अहंकार होता है की जीती-जागती ज्योति उपाध्याय श्री जी का अभिनन्दन कि मैं सब कुछ जानता हूँ, पर वह कुछ भी नहीं जानता। ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। यह हमारे लिए गौरव की जहाँ मन में अहंकार आया वहाँ पर ज्ञान का द्वार बन्द हो बात है। मैं मुनिश्री जी का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। जाता है।
वे चिरायु बनें और हम सभी का सदा पथ-प्रदर्शन करते उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी का हमारी समाज पर रहें। __ श्रीपुष्कर मुनिजी : कुछ संस्मरण
श्री अगरचन्द जी नाहटा, बीकानेर मैं इसे पूर्व जन्म का संस्कार मानता हूँ कि राजस्थान वे जाति और कुल की सामान्य विशेषताओं से बहुत ऊपर केसरी अध्यात्मयोगी उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी का उठकर जैन साधना में प्रतिपल-प्रतिक्षण सरिता की सरस जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ, जो सरस्वती के उपासक हैं। धारा की भांति बढ़ते ही गये। ब्राह्मणकुल में जन्म लेने किन्तु जैन श्रमणों के संसर्ग से वे जैनधर्म में प्रबजित हुए के कारण ज्ञान के प्रति उनकी स्वाभाविक अभिरुचि रही। और जैन धर्म के संस्कार उनमें इतने अधिक रम गये कि उन्होंने संस्कृत, प्राकृत, आगम, दर्शन, साहित्य और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org