Book Title: Panchsangraha Part 07
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ४६
११३-११८ पुरुषवेद, संज्वलनत्रिक, सयोगिगुणस्थान में अंत होने वाली प्रकृतियों का जघन्य स्थिति संक्रम प्रमाण स्त्यानद्धित्रिक आदि बत्तीस प्रकृतियों का जघन्य स्थिति संक्रमप्रमाण
११६ मिथ्यात्व और मिश्रमोहनीय, अनन्तानुबंधिचतुष्क, स्त्यानद्धित्रिक आदि प्रकृतियों के जघन्य स्थिति संक्रम के स्वामी
११६ गाथा ५०
११८-१२० स्थितिसंक्रमापेक्षा मूल प्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा गाथा ५१
१२०-१२३ स्थितिसंक्रमापेक्षा उत्तर प्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा १२२ अनुभाग संक्रम प्ररूपणा के अर्थाधिकार
१२३ गाथा ५२, ५३
१२३-१२८ अनुभाग संक्रम के भेद, विशेष लक्षण और स्पर्धक की प्ररूपणा एवं तत्संबन्धी स्पष्टीकरण
१२५ गाथा ५४
१२८-१२६ मिश्रमोहनीय, आतप, मनुष्य-तिर्यंचआयु, सम्यक्त्वमोहनीय का अनुभाग संक्रम की अपेक्षा रस
१२८ गाथा ५५
१२६-१३० संक्रमापेक्षा उत्कृष्ट रस का प्रमाण
१३० गाथा ५६
१३०-१३२ संक्रमापेक्षा पुरुषवेद, सम्यक्त्वमोहनीय, संज्वलनचतुष्क एवं शेष प्रकृतियों का जघन्यरस का प्रमाण
१३१ गाथा ५७
१३३-१३५ अशुभ प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग संक्रम का स्वामित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only
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