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प्रस्तावना
[७] सीता दशरथकी पुत्री है
यह दशरथजातक, जावाके रामकेलिंग, मलयके सेरीराम तथा हिकायत महाराज रावणमें लिखा है ।
इनमें दशरथजातककी कथा पहले दी जा चुकी है। अन्य कथाएँ लेख-विस्तारके भयसे नहीं दे रहा हूँ।
पद्मचरित और आचार्य रविषेण
संस्कृत पद्मचरित, दिगम्बर कथा साहित्यमें बहुत प्राचीन ग्रन्थ है। ग्रन्थके कथानायक आठवें बलभद्र पद्म ( राम ) तथा आठवें नारायण लक्ष्मण हैं। दोनों ही व्यक्ति जन-जनके श्रद्धाभाजन हैं, इसलिए उनके विषयमें कविने जो भी लिखा है वह कविको अन्तर्वाणीके रूपमें उसकी मानस-हिमकन्दरासे निःसृत मानो मन्दाकिनी ही है। प्रसंग पाकर आचार्य रविषणने विद्याधरलोक, अंजना-पवनंजय, हनुमान तथा सुकोशल आदिका जो चरित्र-चित्रण किया है, उससे ग्रन्थकी रोचकता इतनी अधिक बढ़ गयी है कि ग्रन्थको एक बार पढ़ना शुरू कर बीच में छोड़नेकी इच्छा ही नहीं होती।
इसके रचयिता आचार्य रविषेण है, इन्होंने अपने किसी संघ या गणगच्छका कोई उल्लेख नहीं किया है और न स्थानादिकी ही चर्चा को है परन्तु सेनान्त नामसे अनुमान होता है कि सम्भवतः सेन संघके हों। इनकी गुरुपरम्पराके पूरे नाम इन्द्रसेन, दिवाकरसेन, अर्हत्सेन और लक्ष्मणसेन होंगे, ऐसा जान पड़ता है। अपनी गुरुपरम्पराका उल्लेख इन्होंने इसी पद्मचरितके १२३वें पर्वके १६७वें श्लोकके उत्तरार्धमें इस प्रकार किया है
'आसी दिन्द्रगुरोदिवाकरयतिः शिष्योऽस्य चाहन्मुनि
स्तस्माल्लक्ष्मणसेनसन्मुनिरदः शिष्यो रविस्तु स्मृतम्' । अर्थात् इद्रगुरुके दिवाकर यति, दिवाकर यतिके अर्हन्मुनि, अर्हन्मुनिके लक्ष्मणसेन और लक्ष्मणसेनके रविषेण शिष्य थे।
ये सब किस प्रान्तके थे ? इनके माता-पिता आदि कौन थे ? तथा इनका गार्हस्थ्य जीवन कैसा रहा ? इन सबका पता नहीं है । पद्मचरितकी रचना कब पूर्ण हुई ? इसका उल्लेख इन्होंने १२३ वें पर्वके १८१ वें श्लोक में इस प्रकार किया है।
"द्विशताभ्यधिके समा सहस्र समतीतेऽर्द्धचतुर्थवर्षयुक्ते ।
जिनभास्करवर्द्धमानसिद्धे चरितं पद्ममुनेरिदं निबद्धम् ॥१८१॥ अर्थात् जिनसूर्य-भगवान् महावीरके निर्वाण होनेके १२०३ वर्ष ६ माह बीत जानेपर पद्ममुनिका यह चरित निबद्ध किया गया। इस प्रकार इसकी रचना ७३४ विक्रम संवत में पूर्ण हुई। इनके उत्तरवर्ती उद्योतनसूरिने अपनी कुवलयमालामें-जो वि. सं. ८३५ की रचना है वरांगचरितके कर्ता जटिलमुनि तथा पद्मचरितके कर्ता रविपेणका स्मरण किया है। इसी प्रकार हरिवंशपुराणके कर्ता जिनसेनने भी वि. सं. ८४० की रचना-हरिवंश पुराण में रविषेणका अच्छी तरह स्मरण किया है ।
१. जेहि कए रमणिज्जे वरंग पउमाणचरिय वित्थारे ।
कहव ण सलाहणिज्जे ते कइणो जडियरविसेणे ॥४१॥ २. कृतपद्मोदयोद्योता प्रत्यहं परिवर्तिता ।
मूर्तिः काव्यभवा लोके रवेरिव रवेः प्रिया ॥३४॥
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