Book Title: Padmapuran Part 1
Author(s): Dravishenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 21
________________ १९ गर्भ से उत्पन्न होते हैं । यहाँ भरत और शत्रुघ्नकी माताका नाम नहीं दिया गया है । दशानन विनभि विद्याधरवंश के पुलस्त्यका पुत्र है। किसी दिन वह अमितवेगकी पुत्री मणिमतिको तपस्या करते देखता है और उसपर आसक्त होकर उसकी साधना में विघ्न डालनेका प्रयत्न करता है । मणिमति निदान करती है कि मैं 'उसकी पुत्री होकर उसे मारूंगी' । मृत्युके बाद वह रावणकी रानी मन्दोदरीके गर्भ में आती है । उसके जन्म के बाद ज्योतिषी रावणसे कहते हैं कि यह पुत्री आपका नाश करेगी । अतः रावणने भयभीत होकर मारीचको आज्ञा दी कि वह उसे कहीं छोड़ दे । कन्याको एक मंजूषामें रखकर मारीच उसे मिथिला देशमें गाड़ आता है । हलकी नोंकसे उलझ जानेके कारण वह मंजूषा दिखाई पड़ती है और लोगोंके द्वारा जनके पास पहुँचायी जाती है । जनक मंजूषाको खोलकर कन्याको देखते हैं और उसका सीता नाम रखकर उसे पुत्री की तरह पालते हैं । बहुत समय बाद जनक अपने यज्ञको रक्षाके लिए राम और लक्ष्मणको बुलाते हैं | यज्ञ के समाप्त होनेपर राम और सीताका विवाह होता है, इसके बाद राम सात अन्य कुमारियोंसे विवाह करते हैं और लक्ष्मण पृथ्वी देवी आदि १६ राजकन्याओंसे । दोनों दशरथकी आज्ञा लेकर वाराणसी में रहने लगते हैं । प्रस्तावना नारद से सीता के सौन्दर्यका वर्णन सुनकर रात्रण उसे हर लानेका संकल्प करता है। सीताका मन जाँचने के लिए शूर्पणखा भेजी जाती है लेकिन सीताका सतीत्व देख वह रावणसे यह कहकर लोटती है कि जीताका मन चलायमान करना असम्भव है । जब राम और सीता वाराणसीके निकट चित्रकूट वाटिका में विहार करते हैं तब मारीच स्वर्णमृगका रूप धारण कर रामको दूर ले जाता है । इतने में रावण रामका रूप धारण करके सीता से कहता है कि मैंने स्वर्णभृत महल भेजा है और उनको पालकीपर चढ़ने की आज्ञा देता है । यह पालकी वास्तवमें पुष्पक विमान है, जो सीताको लंका ले जाता है । रावण सीताका स्पर्श नहीं करता है क्योंकि पतिव्रता स्पर्शसे उसकी आकाशगामिनी विद्या नष्ट हो जाती । दशरथको स्वप्न द्वारा मालूम हुआ कि रावणने सीताका हरण किया है और वह रामके पास यह समाचार भेजते हैं । इतनेमें सुग्रीव और हनुमान् बालिके विरुद्ध सहायता मांगने के लिए पहुँचते हैं । हनुमान् लंका जाते हैं और सीताको सान्त्वना देकर लौटते हैं [ लंकादहनका कोई उल्लेख नहीं मिलता ] इसके बाद लक्ष्मण द्वारा बालिका वध होता है और सुग्रीव अपने राज्यपर अधिकार प्राप्त करता है। अब वानरोंकी सेना रामकी सेना के साथ लंकाकी ओर प्रस्थान करती है । युद्धके विस्तृत वर्णनके अन्त में लक्ष्मण चक्रसे रवणका शिर काटते हैं । इसके बाद लक्ष्मण दिग्विजय करके और अर्धचक्रवर्ती [ नारायण ] बनकर अयोध्या लौटते हैं | लक्ष्मणकी सोलह हजार और रामकी आठ हजार रानियाँ हैं । सीताके आठ पुत्र होते हैं [ सीतात्यागका उल्लेख नहीं मिलता ] । लक्ष्मण एक असाध्य रोगसे मरकर रावण वधके कारण नरक जाते हैं। राम, लक्ष्मणके पुत्र पृथ्वीसुन्दरको राज्यपदपर और सीताके पुत्र अजितंजयको युवराज पदपर अभिषिक्त करके दीक्षा लेते हैं और मुक्ति पाते हैं । सीता भी अनेक रानियोंके साथ दीक्षा लेती है और अच्युत स्वर्ग में जाती है । उत्तरपुराणकी यह रामकथा श्वेताम्बर सम्प्रदाय में प्रचलित नहीं है । आचार्य हेमचन्द्र के त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में जो रामकथा है, वह पूर्णतः 'पउमचरिय' या पद्मचरितकी कथा के अनुरूप है । ऐसा जान पड़ता है कि हेमचन्द्राचार्य के सामने 'पउमचरिय' और 'पद्मचरित' दोनों ही ग्रन्थ विद्यमान थे । गुणभद्राचार्य इत्युक्तो रावणो बाणैः सुबाणैः कैकयीसुतम् । प्रावृषेण्यघनाकारो गिरिकल्पं निरुद्धवान् ॥ ९४ ॥ पर्व ७४ कैकयीनन्दनः कृतः माहेन्द्रमस्त्रमुत्सृष्टं चकार गगनासनम् ॥१००॥ पर्व ४ ग्रन्थकी छानबीन करनेपर पता चला है कि रविषेणने भरतकी माताका नाम 'केकया' लिखा है और लक्ष्मणकी माताको 'सुमित्रा' और 'केकयी' इन दो नामोंसे उल्लिखित किया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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