Book Title: Padmapuran Part 1
Author(s): Dravishenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 19
________________ प्रस्तावना [३] वन-भ्रमण इसमें राम-लक्ष्मणके अनेक युद्धोंका वर्णन है । कहीं वज्रकर्णको सिंहोदर के चन्द्रसे बचाते हैं तो बालखिल्यको म्लेच्छ राजाके कारागृहसे उन्मुक्त करते हैं, कभी नर्तकीका रूप धरकर भरत के विरोध में खड़े हुए राजा अतिवीर्यका मान-मर्दन करते हैं। इसी बीचमें लक्ष्मण जगह-जगह राजकन्याओंके साथ विवाह करते हैं। दण्डक वनमें वास करते हैं, मुनियोंको आहार दान देते हैं तथा जटायुसे सम्पर्क प्राप्त करते हैं । १७ [४] सोताहरण और खोज चन्द्रनला तथा सरदूषणका पुत्र शम्बूक सूर्यहास खड्गको सिद्धिके लिए बारह वर्ष तक बाँसके भिड़ेमें बैठकर तपस्या करता है उसकी साधनास्वरूप उसे खड्ग प्रकट हुआ लक्ष्मण संयोगवश वहाँ पहुँचते हैं। और शम्बूकके पहले ही उस खड्गको हाथमें लेकर उसकी परीक्षा करनेके लिए उसी वंशके भिड़ेपर चलाते है जिसमें शम्बूक बैठा था, फलतः शम्बूक मर जाता है। जब चन्द्रनखा भोजन देने के लिए उसके पास आयी तब उसकी मृत्यु देखकर बहुत विलाप करती है। निदान वह राम लक्ष्मणको देख उनपर मोहित होकर प्रेम। प्रस्ताव रखती है पर जब उसे सफलता नहीं मिलती है तब वापस लोट पतिके पास जाकर पुत्रके मरनेका समाचार सुनाती है। खरदूषण के साथ लक्ष्मणका युद्ध होता है, खरदूषण के आह्वानपर रावण भी सहायताके लिए आता है । बीचमें रावण सीताको देख मोहित होता है और उसे अपहरण करनेका उपाय सोचता है । वह विद्याबलसे जान लेता है कि लक्ष्मणने रामको सहायतार्थ बुलाने के लिए सिंहनादका संकेत बनाया है। अतः रावण प्रपंचपूर्ण सिंहनादसे रामको लक्ष्मणके पास भेज देता है और सीताको ले जाता है । अकेली देख हर सीताहरण के बाद राम बहुत दुःखी होते हैं। सुग्रीवके साथ उनकी मित्रता होती है। एक साहसगति नामका विद्याधर सुग्रीवका मायामय रूप बनाकर सुग्रीवकी पत्नी तथा राज्यपर अधिकार करना चाहता है । राम उसे मारते हैं, जिससे सुग्रीव अपनी पत्नी तथा राज्य पाकर रामका भक्त हो जाता है । सुग्रीवकी आज्ञासे विद्यापर सीताको खोज करते हैं। रत्नजटी विद्याधर ने बताया कि सीताका हरण रावणने किया है। उस समय रावण बड़ा बलवान् था इसलिए सुग्रीव आदि विद्याधर उससे युद्ध करनेके लिए पीछे हटते हैं पर उन्हें अनन्तवीर्य केवली के वचन याद आते हैं कि जो कोई शिलाको उठायेगा उसीके हाथसे रावणका मरण होगा । लक्ष्मणने कोटिशिला उठाकर अपनी परीक्षा दी। सुग्रीव आदिको विश्वास हो गया। तब सबके सब वानरवंशी विद्याधर रावणके विरुद्ध रामके पक्षमें खड़े हो जाते हैं। हनुमान् रामका संवाद लेकर सीताके पास जाते हैं और सीताका सन्देश लाकर रामके पास आते हैं । Jain Education International [५] युद्ध सुग्रीव आदि विद्यापरोंकी सहायतासे समस्त सेना आकाश मार्गसे लंका पहुँचती है। रावण बहुरूपिणी विद्या सिद्ध करता है। हनुमान् आदि उसको विद्यासिद्धिमें बाधा डालनेका प्रयत्न करते हैं पर रावण अपनी दृढ़ता से विचलित नहीं होता है और विद्या सिद्ध करके ही उठता है। विभीषणसे रावणका संघर्ष होता है फलतः विभीषण रावणका साथ छोड़ रामसे आ मिलता है। राम विभीषणको लंकाका राजा बनाने का संकल्प करते हैं। दोनों ओरसे घमासान युद्ध होता है। लक्ष्मणको शक्ति लगती है पर विशल्याके स्नान जलसे वह ठीक हो जाता है। विशल्या के साथ लक्ष्मणका अनुराग दृढ़ होता है। अन्तमें रावण लक्ष्मणपुर चक्र चलाता है पर वह प्रदक्षिणा देकर लक्ष्मण के हाथमें आ जाता है और लक्ष्मण उसी चक्रसे रावणका काम समाप्त करता है। लक्ष्मण प्रतिनारायणका वध कर नारायणके रूपमें प्रकट होता है। [३] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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