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प्रस्तावना
नहीं हुआ है। दशरथकी चार रानियोंका वर्णन आता है-उनमें प्रधान महिषीके राम, दूसरी रानी के रामन [रोमण-लक्ष्मण ], तीसरी रानीके भरत और चौथीसे शत्रुघ्न उत्पन्न हुए थे। लेख विस्तारके भयसे 'अनामक जातकम्' और 'दशरथकथानम्' को कथावस्तु नहीं दे रहा हूँ।
___ इस तरह हम हिन्दू और बौद्ध साहित्यमें रामकथाके तीन रूप देखते हैं-एक वाल्मीकि रामायणका, दूसरा अद्भुत रामायणका और तीसरा बौद्ध जातकका।
जैन रामकथाके दो रूप
___ इसी तरह जैन साहित्यमें भी रामकथाकी दो धाराएं उपलब्ध हैं-एक विमलसूरिके 'पउमचरिय' और रविषेणके 'पद्मचरित' की तथा दूसरी गुणभद्रके 'उत्तरपुराण' को।
___ श्वेताम्बर परम्परामें तीर्थकर आदि शलाकापुरुषोंके जीवन सम्बन्धी कुछ तथ्यांश स्थानांग सूत्र में मिलते हैं जिसे आधार मानकर श्वेताम्बर आचार्य हेमचन्द्र आदिने त्रिषष्टि महापुराण आदिकी रचनाएँ की हैं। दिगम्बर परम्परामें तीर्थंकर आदिके चरित्रोंका प्राचीन संकलन नामावलीके रूपमें हमें प्राकृत भाषाके तिलोयपण्णत्ति ग्रन्थमें मिलता है। इसी ग्रन्थमें ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण, ९ बलभद्र तथा ११ रुद्रोंके जीवनके प्रमुख तथ्य भी संगृहीत हैं। इन्हीं के आधार तथा अपनी गुरुपरम्परासे अनुश्रुत कथानकोंके बलपर विभिन्न पुराणकारोंने अनेक पुराणोंकी रचनाएं की हैं। विमलसूरिने 'पउमचरिय' के उपोद्घात में लिखा है कि 'मैं, जो नामावलीमें निबद्ध है तथा आचार्य परम्परासे आगत है ऐसा समस्त पद्मचरित आनुपूर्वीके अनुसार संक्षेपसे कहता हूँ''। उनके इस उल्लेखसे स्पष्ट है कि उन्होंने नामावलीको मुख्याधार मानकर 'पउमचरिय' की रचना की है। तिलोयपण्णत्तिमें जो नामावलीके रूपमें तीर्थंकर आदि शलाकापुरुषोंका चरित अंकित किया गया है-उसको उत्तरवर्ती पुराणकारोंने भी अपने-अपने ग्रन्थोंमें स्थान दिया है। रविषेणने पद्मचरितके बीसवें पर्वमें उस भवको आत्मसात किया है। इस ग्रन्थके अन्तमें जो ग्रन्थ निर्माणके विषयमें उल्लेख किया है उससे यह वीर निर्वाण सं. ५३० विक्रम संवत् ६० में रचा गया सिद्ध है, पर डॉ. हर्मन जैकोबी, डॉ. कीथ, डॉ. बुलनर आदि पाश्चात्त्य विशेषज्ञ इसकी भाषाशैली तथा शब्दोंके प्रयोगपर दृष्टि डालते हुए इसे ईसाकी तीसरी-चौथी शताब्दीका रचा हुआ मानते हैं। इसके उपरान्त आचार्य रविषेणने वीर निर्वाण संवत् १२०४ और विक्रम संवत् ७३४ में संस्कृत पद्मचरितकी रचना की है। इन दोनों ग्रन्थों में प्रतिपादित कथाकी धारा निम्नांकित छह विभागोंमें विभक्त की जा सकती है-[१] विद्याधर काण्डराक्षस तथा वानर वंशका वर्णन, [२] राम और सीताका जन्म तथा विवाह, [३] वनभ्रमण, [४] सीताहरण और खोज [५] युद्ध, [६ ] उत्तर चरित । इनका संक्षिप्त कथासार इस प्रकार है
[१] विद्याधर काण्ड
प्रथम ही राजा श्रेणिक भगवान् महावीरके प्रथम गणधर गौतम स्वामीसे रामकथाका यथार्थ रूप जानने की इच्छा प्रकट करता है इसके उत्तरमें गौतम स्वामी रामकथा सुनाते हैं। प्रारम्भमें विद्याधर लोक, राक्षस वंश, वानर वंश और रावणकी वंशावलीका वर्णन दिया गया है
राक्षस वंशके राजा रत्नश्रवा तथा केकसीके चार सन्तान हैं-रावण, कुम्भकर्ण, चन्द्रनखा और विभीषण। जब रत्नश्रवाने पहले पहल अपने पुत्र रावणको देखा था तब शिशु जो हार पहने हुए था उसमें उसे रावणके दस सिर दिखे इसीलिए उसका दशानन या दशग्रीव नाम रखा गया। अपने मौसेरे भाईका
१. णामावलिय णिबद्ध आयरिय परम्परागर्म सव्वं ।
वोच्छामि पउमचरियं अहाणुपुब्बि समासेण ॥८॥
-'पउमचरिय-' उद्देश १
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