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पद्मपुराणे दशरथ महाराज वाराणसी में धर्मपूर्वक राज्य करते थे। इनकी ज्येष्ठा महिषीके तीन सन्तान थी-दो पुत्र [ रामपण्डित और लक्खण ] और एक पुत्री [ सीता देवी ]। इस महिषीके मरनेके पश्चात् राजाने एक दूसरीको ज्येष्ठा महिषीके पदपर नियुक्त किया। उसके भी एक पुत्र [ भरत कुमार ] उत्पन्न हुआ। राजाने उसी अवसरपर उसको एक वर दिया। जब भरतकी अवस्था सात वर्षकी थी, तब रानीने अपने पुत्रके लिए राज्य माँगा। राजाने स्पष्ट इनकार कर दिया। लेकिन जब रानी अन्य दिनोंमें भी पुनः-पुनः इसके लिए अनुरोध करने लगी तब राजाने उसके षड्यन्त्रोंके भयसे अपने दोनों पुत्रोंको बुलाकर कहा-'यहाँ रहनेसे तुम्हारे अनिष्ट होनेकी सम्भावना है इसलिए किसी अन्य राज्य या वनमें जाकर रहो और मेरे मरनेके बाद लौटकर राज्यपर अधिकार प्राप्त करो।' उसी समय राजाने ज्योतिषिर्योको बुलाकर उनसे अपनी मृत्युकी अवधि पूछी। बारह वर्षका उत्तर पाकर उन्होंने कहा-'हे पुत्रो ! बारह वर्षके बाद आकर छत्रको उठाना।' पिताकी वन्दना कर दोनों भाई चलनेवाले थे कि सीता देवी भी पितासे विदा लेकर उनके साथ हो ली। तीनोंके साथ-साथ बहुत-से अन्य लोग भी चल दिये । उनको लौटाकर तीनों हिमालय पहुँच गये और वहां आश्रम बनाकर रहने लगे। नौ वर्षके बाद दशरथ पुत्रशोकके कारण मर जाते हैं। रानी भरतको राजा बनाने में असफल होती है क्योंकि अमात्य और भरत भी इसका विरोध करने लगे। तब भरत चतुरंगिणी सेना लेकर रामको ले आनेके उद्देश्यसे वनको चले जाते हैं। उस समय राम अकेले ही हैं। भरत उनसे पिताके देहान्तका सारा वृत्तान्त कहकर रोने लगते हैं परन्तु रामपण्डित न तो शोक करते हैं और न रोते हैं।
सन्ध्या समय लक्षण और सीता लौटते हैं। पिताका देहान्त सुनकर दोनों अत्यन्त शोक करते हैं। इसपर रामपण्डित उनको धैर्य देने के लिए अनित्यताका धर्मोपदेश सुनाते हैं। उसे सुनकर सब शोकरहित हो जाते हैं । बादमें भरतके बहुत अनुरोध करनेपर भी रामपण्डित यह कहकर वनमें रहनेका निश्चय प्रकट करते हैं-'मेरे पिताने मझे बारह वर्षको अवधिके अन्त में राज्य करने का आदेश दिया है अतः अभी लौटकर मैं उनकी आज्ञाका पालन न कर सकूँगा। मैं तीन वर्ष बाद लौट आऊँगा।'
जब भरत भी शासनाधिकार अस्वीकार करते हैं तब रामपण्डित अपनी तिण्णपादुका-तृणपादुका देकर कहते हैं 'मेरे आने तक ये शासन करेंगी।' तृणपादुकाओंको लेकर भरत लक्ष्मण, सीता तथा अन्य लोगोंके साथ वाराणसी लौटते हैं। अमात्य इन पादुकाओंके सामने राजकार्य करते हैं। अन्याय होते ही वे पादुकाएँ एक दूसरेपर आघात करती थीं और ठोक निर्णय होनेपर शान्त होती थीं।
तीन वर्ष व्यतीत होनेपर रामपण्डित लौटकर अपनी बहन सीतासे विवाह करते हैं। सोलह सहस्र वर्ष तक राज्य करनेके बाद वे स्वर्ग चले जाते हैं। जातकके अन्तमें महात्मा बुद्ध जातकका सामंजस्य इस प्रकार बैठाते हैं-उस समय महाराज शुद्धोदन महाराज दशरथ थे। महामाया [ बुद्धकी माता ] रामकी माता, यशोधरा [ राहुलकी माता ] सीता, आनन्द भरत थे और मैं रामपण्डित था।
इसी प्रकार 'अनामकं जातकम्' में भी किसी पात्रका उल्लेख न कर सिर्फ रामके जीवनवृत्तसे सम्बन्ध रखनेवाली कथा कही गयी है। इस जातकमें विशेषता यह है कि रामको विमाताके कारण पिता द्वारा वनवास नहीं दिया जाता है । वे अपने मामाके आक्रमणकी तैयारियाँ सुनकर स्वयं राज्य छोड़ देते हैं।
इसी प्रकार चीनी तिपिटकके अन्तर्गत त्सा-पौ-त्संग-किंग नामक १२१ अवदानोंका संग्रह है। यह संग्रह ४७२ ई. में चीनी भाषामें अनूदित हुआ था। इसमें एक 'दशरथकथानम्' भी मिलता है। इसमें भी रामकथाका उल्लेख किया गया है, विशेषता यह है कि इसमें सीता या किसी अन्य राजकुमारीका उल्लेख
तीन ...
१. तीसरी शताब्दी ई.में 'अनामकं जातकम्'का कांग-सेंग-हुई द्वारा चीनी भाषामें अनुवाद हुआ था । यद्यपि
मूल भारतीय पाठ अप्राप्य है परन्तु चीनी अनुवाद 'लियेऊलु-सी किंग' नामक पुस्तकमें सुरक्षित है। [ देखो चीनी तिपिटकका तैशो संस्करण नं. १५२ ]
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