Book Title: Padmapuran Part 1
Author(s): Dravishenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

Previous | Next

Page 15
________________ प्रस्तावना १३ आयुर्वेद, ज्योतिष आदि अनेक रत्न विद्यमान हैं । प्राचीन संस्कृत में ऐसा आपको विषय नहीं मिलेगा जिसपर किसी ने कुछ न लिखा हो । अर्जन संस्कृत साहित्य तो विशालतम है ही परन्तु जैन संस्कृत साहित्य भी उसके अनुपात में अल्पपरिमाण होनेपर भी उच्चकोटिका है। जैन साहित्यकी प्रमुख विशेषता यह है कि उसमें वस्तु स्त्ररूपका जो वर्णन किया गया है वह हृदयस्पर्शी है, वस्तुके तथ्यांशको प्रतिपादित करनेवाला है और प्राणिमात्रका कल्याणकारक है । रामकथा साहित्य मर्यादापुरुषोत्तम रामचन्द्र इतने अधिक लोकप्रिय पुरुष हुए हैं कि उनका वर्णन न केवल भारतवर्ष के साहित्य में हुआ है अपितु भारतवर्ष के बाहर भी सम्मान के साथ उनका निरूपण हुआ है और न केवल जैन साहित्य में ही उनका वर्णन आता है किन्तु वैदिक और बौद्ध साहित्य में भी सांगोपांग वर्णन आता है । संस्कृतप्राकृत अपभ्रंश आदि प्राचीन भाषाओं एवं भारत की प्रान्तीय विभिन्न भाषाओंमें इसके ऊपर उच्चकोटिके ग्रन्थ लिखे गये हैं । न केवल पुराण अपितु काव्य- महाकाव्य और नाटक - उपनाटक आदि भी इसके ऊपर अच्छी संख्या में लिखे गये हैं । जिस किसी लेखकने रामकथाका आश्रय लिया है उसके नीरस वचनों में भी रामकथा जान डाल दी है । इसका उदाहरण भट्टि काव्य विद्यमान है । रामकथा की विभिन्न धाराएँ हिन्दू, बौद्ध और जैन — इन तीनों ही धर्मावलम्बियों में यह कथा अपने-अपने ढंग से लिखी गयी है और तीनों ही धर्मावलम्बी रामको अपना आदर्श - महापुरुष मानते हैं । अभी तक अधिकांश विद्वानोंका मल यह है कि रामकथाका सर्वप्रथम आधार वाल्मीकि रामायण है । उसके बाद यह कथा महाभारत, ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण, अग्निपुराण, वायुपुराण आदि सभी पुराणोंमें थोड़े बहुत हेर-फेर के साथ संक्षेपमें लिपिबद्ध की गयी है । इसके सिवाय अध्यात्मरामायण, आनन्दरामायण, अद्भुतरामायण नामसे भी कई रामायण ग्रन्थ लिखे गये । इन्होंके आधारपर तिब्बती तथा खोतानी रामायण, हिन्देशिया की प्राचीनतम रचना 'रामायण काका विन', जावाका आधुनिक 'सेरत राम' तथा हिन्दचीन, श्याम, ब्रह्मदेश एवं सिंहल आदि देशोंकी रामकथाएँ भी लिखी गयी हैं । वाल्मीकि रामायणकी रामकथा सर्वत्र प्रसिद्ध है । इसलिए उसे अंकित करना अनुपयुक्त है। हाँ, अद्भुत रामायण में सीताकी उत्पत्तिकी जो कथा लिखी है वह निराली है अतः उसे यहाँ दे रहा हूँ । उसमें लिखा है कि दण्डकारण्यमें गृत्समद नामके एक ऋषि थे । उनकी स्त्रीने उनसे प्रार्थना की कि हमारे गर्भ से साक्षात् लक्ष्मी उत्पन्न हो । स्त्रीकी प्रार्थना सुनकर ऋषि प्रतिदिन एक घड़े में दूधको अमन्त्रित कर रखने लगे । इसी समय वहाँ एक दिन रावण आ पहुँचा, उसने ऋषिपर विजय प्राप्त करने के लिए उनके शरीरपर अपने बाणोंकी नोंके चुभा-चुभाकर शरीरका बूँद-बूँद रक्त निकाला और उसी घड़े में भर दिया। रावण उस घड़ेको साथ ही ले गया और ले जाकर उसने मन्दोदरीको यह जताकर दे दिया कि 'यह रक्त विषसे भी तीव्र है ।' कुछ समय बाद मन्दोदरीको यह अनुभव हुआ कि हमारा पति मुझपर सच्चा प्रेम नहीं करता है इसलिए जीवनसे निराश हो उसने वह रक्त पी लिया । परन्तु उसके योगसे वह मरी तो नहीं किन्तु गर्भवती हो गयी । पतिकी अनुपस्थिति में गर्भधारण हो जानेसे मन्दोदरी भयभीत हुई और वह उसे छिपाने का प्रयत्न करने लगी। निदान, एक दिन वह विमान द्वारा कुरुक्षेत्र जाकर उस गर्भको जमीनमें गाड़ आयी । उसके बाद हल जोतते समय वह गर्भजात कन्या राजा जनकको मिली और उन्होंने उसका पालन-पोषण किया । यही सीता है। वस्तुतः अद्भुत रामायण की यह कथा अद्भुत ही है । सीताजन्मके विषय में और भी विभिन्न प्रकारकी कथाएँ प्रचलित हैं उनका उल्लेख अलग प्रकरण में करूँगा । बौद्धों के यहाँ पाली भाषामय 'जातकट्ठवण्णना' के दशरथजातकमें रामकथाका संक्षेप इस प्रकार है- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 604