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[६] उत्तरचरित
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अयोध्या में राम-लक्ष्मण लौटकर राज्य करने लगते हैं । भरत विरक्त हो दीक्षा ले लेता है । राम लोकापवादसे त्रस्त होकर गर्भवती सीताको वनमें छुड़वा देते हैं सीता राजा वज्रजंघके आश्रयमें रहती है । वहीं उसके लवण और अंकुश नामक दो पुत्र उत्पन्न होते हैं। बड़े होनेपर लवण और अंकुश राम-लक्ष्मण से युद्ध करते हैं । अन्तमें नारदके निवेदनपर पिता-पुत्रों में मिलाप होता है हनुमान्, सुग्रीव, विभीषणादिके कहने पर राम सीता को बुलाते हैं, सीता अग्निपरीक्षा देती है और उसके बाद आर्थिका हो जाती है तथा तपकर सोलहवें स्वर्ग में प्रतीन्द्र होती है। किसी दिन दो देव नारायण तथा बलभद्रका स्नेह परखने के लिए आते हैं । वे झूठ-मूठ ही लक्ष्मणसे कहते हैं कि रामका देहान्त हो गया । उनकी बात सुनते ही लक्ष्मणकी मृत्यु हो जाती है । भाईके स्नेहसे विवश हो राम छह मास तक लक्ष्मणका शव लिये फिरते हैं । अन्तमें कृतान्तवक्त्र सेनापतिका जीव जो देव हुआ था, उसकी चेष्टासे वस्तुस्थिति समझ लक्ष्मणको अन्त्येष्टि करते हैं और विरक्त हो तपश्चर्या कर मोक्ष प्राप्त करते हैं ।
पद्मपुराणे
इस धारा कथानकका जैन समाजमें भारी प्रचार है। हेमचन्द्राचार्य कृत जैनरामायण, जो त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरितका एक अंश है, इसी धाराके अनुरूप विकसित है। जिनदास कृत रामपुराण, पद्मदेव विजय गणिकृत रामचरित तथा कथाकोषोंमें आगत रामकथाएँ इसी धारामें प्रवाहित हुई हैं। स्वयंभू देवकृत अपभ्रंश भाषाका पउमचरिउ तथा नागचन्दकृत कर्नाटक पद्मरामायण इसी के अनुकूल हैं ।
दूसरी धारा गुणभद्राचार्यकृत उत्तरपुराणकी है । गुणभद्र जिनसेनाचार्यके शिष्य थे। जिनसेन के 'कविपरमेश्वरनिगदितगद्यकथा मातृकं पुरोश्चरितम्' इस उल्लेखसे यह स्पष्ट किया है कि उन्होंने आदिपुराण की रचना कवि परमेश्वर के गद्यात्मक ' वागर्थसंग्रह ' पुराणके आधारपर की हैं। जिनसेन आदिपुराणकी रचना पूर्ण करनेके पूर्व ही दिवंगत हो गये, अतः अवशिष्ट आदिपुराण तथा उत्तरपुराणको रचना उनके प्रबुद्ध शिष्य गुणभद्र की है । बहुत कुछ सम्भव है कि गुणभद्रने भी उत्तरपुराणकी रचना करते समय कवि परमेश्वर के 'वागर्थसंग्रहपुराण' को ही आधारभूत माना हो पर आजकल वह रचना अप्राप्य है । इसलिए रामकथा की इस द्वितीय धाराके उपोद्घातकके रूपमें सर्वप्रथम गुणभद्रका ही नाम आता है । उत्तरपुराणके ६७वें तथा ६९ वें पर्व में ११६७ श्लोकोंमें आठवें बलभद्र तथा नारायणके रूपमें राम तथा लक्ष्मणका वर्णन किया गया है । यह वर्णन 'पउमचरिउ' और 'पद्मचरित' के वर्णन से भिन्न है । इसमें खास बात यह है कि सीताको जनककी पुत्री न मानकर रावण-मन्दोदरीकी पुत्री माना है । सीता-जन्मकी चर्चा आगे चलकर पृथक् स्तम्भमें करेंगे । उससे स्पष्ट होगा कि 'सीता रावणकी पुत्री थी' यह न केवल गुणभद्रका मत था किन्तु तिब्बती रामायण तथा अन्य ग्रन्थों में भी वैसा ही उल्लेख है । अतः सम्भवतः रामकथा का यह दूसरा रूप गुणभद्र के समय में पर्याप्त प्रचार पा चुका होगा और उन्हें अपनी गुरु-परम्परासे यही मत प्राप्त हुआ होगा । इसलिए आचार्य परम्परा के अनुसार उन्होंने इसीका उल्लेख किया है। पद्मचरितकी प्रथम धाराको पढ़नेके बाद यद्यपि इस धाराको पढ़नेमें कुछ अटपटा-सा लगता है पर यह धारा सर्वथा निर्मूल नहीं मालूम होती । अपभ्रंश भाषाके महापुराण में महाकवि पुष्पदन्तने, कर्णाटक भाषा के त्रिषष्टि शलाका पुरुष पुराणमें चामुण्डराय ने और पुण्यास्रव कथासारमें नागराजने गुणभद्रकी धारा में ही अवगाहन कर अपने काव्य लिखे हैं ।
उत्तरपुराणका संक्षिप्त कथानक इस प्रकार है
वाराणसी के राजा दशरथके चार पुत्र उत्पन्न होते हैं- - राम सुबाला के गर्भसे, लक्ष्मण कैकेयी के गर्भ से और बादमें जब दशरथ अपनी राजधानी साकेतमें स्थापित करते हैं तब भरत और शत्रुघ्न भी किसी रानीके
१. रविषेणने यद्यपि लक्ष्मणको लिखा है रूपमें उल्लिखित किया है, उदाहरण के लिए एक श्लोक यह है
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सुमित्राका पुत्र, परन्तु बीच-बीच में जब कभी उन्हें केकयी सूनुके
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