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संस्कृत टीका का एक और महान कार्य
आचार्य श्री कुन्दकुन्ददेव कृत आध्यात्मिक ग्रन्थराज नियमसार को आधुनिक जनमानस को सरल सुबोध भाषा में समझने हेतु पू० माताजी ने अपनी लेखनी से संस्कृत टीका की रचना की जिसमें गुणस्थान तथा नयव्यवस्था की शैली में सुन्दर खुलासा वर्णन किया गया है। इसे पढ़कर प्रत्येक व्यक्ति आध्यात्मिक ग्रन्थ के महत्त्व को समझ सकते हैं। धन्य है माताजी का आत्मबल और धैर्य | अस्वस्थ होते हुए भी जिन्होंने अपने ३२ वर्ष के दीक्षित जीवन में सांस्कृतिक, साहित्यिक तथा रचनात्मक रूप चतुमुखी कार्यों के द्वारा जो अमूल्य कृतियाँ जनता को दी हैं उन्हें कभी भी विस्मरण नहीं किया जा सकता।
भगवान जिनेन्द्रदेव से यही प्रार्थना है कि पू. आर्यिकारल श्री ज्ञानमती माताजी स्वास्थ्य लाभ करते हुए चिरकाल तक भव्यों को मार्गदर्शन देती रहें।
-कु. माधुरी शास्त्री