________________ द्वितीयसर्गः हो दमयन्ती के योग्य पति है, अन्य नहीं। यहाँ नल और दमयन्ती दोनों एक दूसरे के सम होने से समालंकार है। शम्दालंकारों में 'रूप' 'रूप' में यमक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। अनया तव रूपसोमया कृतसंस्कारविबोधनस्य मे / चिरमप्यवलोकिताद्य सा स्मृतिमारूढवती शुचिस्मिता // 13 // अन्धयः-चिरम् अपि अवलोकिता शुचिस्मिता सा अद्य तव अनया रूप-सीमया कृत-संकारविबोधनस्य मे स्मृतिम् आरूढवती।। टीका-चिरं चिरकालपूर्वम् अपि अवलोकिता दृष्टा झुचि सुन्दरं स्मितं हासः (कर्मधा० ) यस्यास्तथाभूतः (ब० वी० ) सा दमयन्ती अद्य अस्मिन् दिने तव ते अनया प्रत्यक्षं दृश्यमानया रूपस्य सौन्दर्यस्य सोमया मर्यादया (10 तत्पु०) कृतः विहितः संस्कारस्य पूर्वानुभवजनितभावनाख्यसंस्कारस्य भूतस्य ( ब० श्री. ) मे मम स्मृति स्मरणम् आरूढवती आगतेत्यर्थः / तव सौन्दर्यमालोक्य त्वत्तल्यसौन्दर्यवती दमयन्ती मम स्मरणविषयाभूतेत्यर्थः / / 43 // व्याकरण-सीमया-सीमन् शब्द को नान्त होने से स्त्रीलिंग में डीप् प्राप्त था, किन्तु उसका निषेध करके विकल्प से डाब् हो रहा है। अच-यास्काचार्य के अनुसार यह 'अस्मिन् द्यवि' इन दो शब्दों के आद्य अक्षरों को लेकर बना संक्षिप्त रूप है। स्मितम् स्मि+क्तः ( भावे)। अनुवाद-बहुत समय पहले की देखी हुई भी मीठी मुस्कानवाली वह (दमयन्ती ) तुम्हारे हद पर पहुँचे सौन्दर्य द्वारा संस्कार जागृत किये जाने से मेरी स्मृति में आ पड़ी है / / 43 / / टिप्पखोन्यायशास्त्र में स्मृति के कारणों में सदृशवस्तुदर्शन भी गिनाया हुआ है। कहा हुआ मो है-'सदृशादृष्ट चिन्ताधा: स्मृतिबीजस्य बोधकाः' / यहाँ सदृश से सदृश की स्मृति बतायी गयी है, इसलिए स्मरणालंकार है। शब्दालंकारों में 'नया' 'मया' में आद्य अक्षर अकार को लेकर 'प्रया' 'प्रया' की तुक से पदगत अन्त्यानुपास, स्मृति' 'स्मिता' ये छेकानुप्रास और अन्यत्र वृत्यनुप्रास है। स्वयि वीर ! विराजते परं दमयन्तीकिलकिञ्चितं किल / तरुणीस्तन एव दीप्यते मणिहारावलिरामणीयकम् // 14 // अन्वयः-हे वीर ! दमयन्ती-किलकिश्चितम् त्वयि परम् विराजते किल / मणियकम् तरपीस्तने एव दीप्यते। ___टीका-हे शूर हे वीर ! दमयन्त्याः किलकिश्चितं तत्तच्छृङ्गारचेष्टाविशेषाः ('क्रोषाहर्षमोत्यादेः संकरः किलकिन्चितम्' ) त्वयि नले परं केवलं विराजते शोमते किलेति निश्चये स्त्रीयां वोरानुरागित्वात् , मणीनां मुक्तादीनां हारस्य या आवलिः पङ्किः तस्या रामणीयकं सौन्दर्यम् (प. तत्पु० ) तरुण्या युवत्याः स्तने कुचे (10 तत्पु० ) एव दीप्यते शोमते न तु वृद्धायाः // 4 // व्याकरण-रामणीयकम् रमणीयस्य मावः इति रमणीय+बुञ् (कोअक)। रमणीय रम्यतेऽत्रेति रम् +अनीय ( अधिकरणे ) / अनुवाद-हे वीर ! दमयन्ती की शृंगारिक चेष्टायें वास्तव में केवल तुम पर ही शोमा देती है। मणि-हार की लड़ी युवति के स्तन पर ही चमकती है // 44 / /