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।। अर्हम् ।।
मोक्ख- पुरिसत्थो
बारसमं अज्झयणं- कसायजओ
११. ( कषाय - जय )
कषाय को पतली करके निर्मूल करेतो जीव वेगो-वेगो मोक्ष में जाय
पढमो परिच्छेओ - कसाय सरूवं ( कषाय - स्वरूप)
मंगलाचरण और प्रार्थना
जय देव ! अकसाइ ! णच्चा सए पयंबुजे । कसायाण खयं वोच्छं, दिज्ज मे मइमं ! मई ॥ १ ॥
हे कषायों से मुक्त देव ! आप जीतो ! (मेरे द्वारा) स्मरण किये गये ( आपके ) चरण-कमलों को नमस्कार करके, ( मैं ) कषायों का क्षय ( करने की जिन वचनों के अनुसार विधि) कहता हूँ । हे मतिमान् ! मुझे ( इसका वर्णन करने की ) बुद्धि दीजिये ।
टिप्पण - १. कषाय का क्षय ही प्रमुख साधना है । अधिकाँश गुण-स्थानों का आविर्भाव कषाय-क्षय के तारतम्य से निष्पन्न होते हैं । अतः इससे सम्बन्धित बोल महत्त्वपूर्ण है । इसीलिये इस अध्ययन का