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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२ कहें : 'मैं सोचूंगा, मैं खोजूंगा',लेकिन यदि वह तथ्य है, जैसे भयभीत आदमी बाहर से बहादुर बनने की कोशिश में लगा है तो उससे यह कहने पर भी कि तुम्हारे अन्दर भीरुता है, वह इतने जोर से इन्कार करेगा कि उसका कोई हिसाब नहीं।
परन्तु मुझे बाहर के तथ्यों से कोई प्रयोजन ही नहीं। इसलिए उस तरह की प्रामाणिकता में जाने की मैं कोई तैयारी नहीं दिखाऊंगा। मैं तो एक ही प्रामाणिकता मानता हूं कि जो मैं कह रहा हूं वह जिन प्रयोगों से मुझे दिखाई पड़ता है कि ऐसा है उन प्रयोगों में से कोई भी गुजरने को तैयार हो । अब जैसे समझ लें एक आदमी है जिसने पहली दफा दूरबीन बनाई जिससे दूर के तारे देखे जा सकते हैं । दूरबीन बनी। पहले आदमी ने जिसने दूरबीन बनाई मित्रों को आमंत्रित किया कि तुम आओ कि मैं तुम्हें ऐसे तारे दिखला देता हूं जो तुमने कभी नहीं देखे। उन्होंने दूरबीन से देखने से इन्कार कर दिया कि हो सकता है कि तुम्हारी दूरवीन में कुछ बात हो जिससे कुछ तारे दिखाई पड़ते हैं, जो नहीं है । तुम खुली आंख से कुछ ऐसी बातें बताओ जो दूर की हैं फिर हम माने कि तुम्हारी दूरबीन की कोई बात हो सकती है। पहले खुली आंख से कुछ • बताओ जो कि दूर का है, जो कि हमको नहीं दिखाई पड़ता परन्तु तुमको दिखाई पड़ रहा हो फिर हम दूरबीन से झांकें। उन्होंने दूरबीन से झांका तो उन्होंने कहा कि इसमें कुछ पक्का नहीं होता है। हो सकता है यह दूरबीन की ही करतूत हो । मेरी बात आप समझे न ? लेकिन वह आदमी क्या कर सकता है, इसके सिवा और क्या उपाय है । वह तो यही कह सकता है कि तुम भी दूरबीन बना लो जिसमें कि तुम्हें यह पक्का हो जाए।। तुम अपनी दूरवीन बना लो और तुम अपनी दूरवीन से झांको। और मामला इतना जटिल है कि जरूरी नहीं कि मैं अन्तस् प्रयोगों के लिए कहूं तो तुम्हें ठीक वही दिखाई पड़े जो मुझे दिखाई पड़ता है। लेकिन एक बात पक्की है कि तुम्हें जो भी दिखाई पड़े तुम इतना अनुभव कर सकोगे कि जो कुछ मैं कह रहा हूं वह दिखाई पड़ रहा होगा। दूसरे तुम यह भी अनुभव कर सकोगे कि जो कुछ मैं कह रहा हूं उसके पीछे जो दृष्टि है, वह तुम्हें कुछ भी दिखाई पड़े तो फौरन तुम्हारी समझ में आ जाएगा कि वह दृष्टि क्या है और यह भी तुम्हें दिखाई पड़ेगा कि महावीर मेरे लिए गौण है । न क्राइस्ट का कोई मूल्य है, न बुद्ध का कोई मूल्य है । मूल्य है हमारा जो भटक रहे हैं, और इनको किसी तरफ से, किसी कोण से एक चीज दिई पड़ जाए जो इनकी भटकन को मिटा दे, और एक दिन ये वहां पहुंच जाएं जहां . कि कोई भी महावीर कभी पहुंचता रहा है ।