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महावीर : मेरी दृष्टि में निकल सकता है। लेकिन इसलिए मुझे कोई प्रयोजन नहीं है। यह मैं सिद्ध करने जाऊंगा ही नहीं । सिद्ध कर भी सकता हूं तो भी सिद्ध करने नहीं जाऊंगा; क्योंकि मेरी दृष्टि ही यह है कि महावीर को प्रसंग बना कर 'तुम' कैसे गति कर सकते हो। और यह तक हो सकता है कि बहुत कुछ जो कहा जाता है वह छोड़ देना पड़े; बहुत कुछ जो नहीं कहा जाता है, उसे खोज लेना पड़े । और, हम भब एक दृष्टि लेकर प्रवेश करते हैं और अन्तस् की खोज में चलते हैं ? कि कठिनाई क्या है ?
समझो कि मैं एक बहत बहादुर आदमी के सम्बन्ध में कहे कि यह बहुत परपोक है तो शायद वह भी मुझसे पहली बार राजी न हो कि आप यह मेरे सम्बन्ध में क्या कह रहे हैं ? मेरे पास प्रमाण पत्र है बहादुरी के, सर्टिफिकेट हैं । मैं सिद्ध कर सकता हूँ कि मुझसे बड़ा कोई बहादुर नहीं है। महावीर-चक्र है मेरे पास । युद्ध के मैदान पर कभी पीछे नहीं लौटा हूँ। लेकिन ये प्रमाण-पत्र कुछ गलत नहीं करते हैं। फिर भी यह हो सकता है कि वह भीतर से एक भयभीत आदमी हो । और ऐसा हुआ है कि जो व्यक्ति अन्तस् चेतन में भयभीत होता है, वह बाहर के कृत्यों में निर्भय सिद्ध करने की कोशिश में लगा रहता है, यानी वह बाहर के कृत्यों में अपने को निर्भय सिद्ध करने के जो उपाय कर रहा है, वह उपाय कर हो इसलिए रहा है कि भीतर जो उसका भय है उसे भूल जाए और मिट जाए।
अब एक व्यक्ति मेरे पास आया जिसको कोई भी नहीं कह सकता कि वह • भयभीत होगा। शरीर से बलिष्ठ है; हर तरह के संघर्षों से गुजरा है, जेलें काटी हैं, दबंग है और उसके सामने खड़ा हो जाए तो आदमी हिल जाए। उस आदमी ने मुझसे कहा कि मैं इतना डरता हूँ कि जब मैं बोलने खड़ा. होता हूँ तो मेरे पैर कांपने लगते हैं और मुझे लगता है कि आज मेरे मुख से शब्द निकलेगा, या नहीं। निकल जाता है, यह दूसरी बात है परन्तु सदा भय. बना रहता है। अब इस आदमी को खुद ही ख्याल आ जाए तो ठीक है। नहीं तो इससे कहा जाए कि ऐसा है तो बहुत मुश्किल हो जाए। अब अन्तर्जीवन के तथ्य हमें ही ज्ञात नहीं। और यदि मैं कहूँ आपके सम्बन्ध में यह अन्तर्जीवन की बात है तो हो सकता है कि आप सबसे पहले इन्कार करने वाले व्यक्ति हों। और यह बात ध्यान रहे कि आप जितने जोर से इन्कार करेंगे उतने ही जोर से मेरे लिए सही होगा कि यह तथ्य आप के अन्दर है क्योंकि जोर से इन्कार इसीलिए माता है । अगर वह तथ्य न हो तो शायद आप