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बहरि सामान्यपनै जो अंत निषेककी स्थिति तिसप्रमाण है तहां स्थितिबंध कहिए हैं, जात सामान्य कथनविर्षे उत्कृष्टका ग्रहण कीजिए है।
बहरि एक समयविष बंध्या जो प्रकृतिका समयप्रबद्ध ताके परिमाणूनिविष प्रथमादि निषेकनिका कैसे विभाग हो है ? ताके जाननेकौं गोम्मटसारविर्षे कर्मकांडका कर्मस्थिति रचना सद्भवनामा अंतका जो अधिकार तहां द्रव्यस्थिति गुणहानि नानागुणहानि अन्योन्याभ्यस्तराशि दो गुणहानिका प्रमाण कहि तहां विधान कह्या है सों जानना। इहां भी आगैं संक्षेपसा विधान कहिएगा। बहुरि इनि प्रथमादि निषेकनिकी रचना ऊपरि कारि लिखिए है, तातै प्रयमादि पहले निषेकनिकौं नीचेंके निषेक कहिए है अर पिछले निषेकनिकी ऊपरिके निषेक कहिए है असा जानना । बहरि जैसे भाजनादि निमित्ततें पुष्पादिक हैं ते मदिरारूप परिणमैं तिनमैं जैसी शक्ति हो है जो भक्षणकालविर्षे हीनाधिक विशेष लीएं पुरुषकौं उन्मत्तता करै तैसैं रागादि निमित्ततें पुद्गल हैं ते कर्मरूप परिणमैं, तिनमैं असी शक्ति हो है जे उदयकालविषै हीनाधिक विशेष लीएं जीवकै ज्ञान आच्छादनादि करें । असैं बंध होतें शक्तिका होना ताका नाम अनुभागबंध है । तहां एक प्रकृतिके एक समयविर्षे बंधे जे परमाणू तिनविर्षे नानाप्रकार शक्ति हो है सो कहिए है
शक्तिका अविभाग अंश ताका नाम अविभागप्रतिच्छेद है । बहुरि तिनके समूहकरि युक्त जो एक परमाणू ताका नाम वर्ग है । बहुरि समान अविभागप्रतिच्छेदयुक्त जे वर्ग तिनके समूहका नाम वर्गणा है । तहां स्तोक अनुभागयुक्त परमाणू का नाम जघन्य वर्ग है। तिनके समूहका नाम जघन्य वर्गणा है। बहरि जघन्य वर्गतै एक अधिक अविभागप्रतिच्छेदयुक्त जे वर्ग तिनके समूहका नाम द्वितीय वर्गणा है। औसै क्रमतें एक एक अविभागप्रतिच्छेद अधिक वर्गनिका समूहरूप वर्गणा यावत् होइ तावत् तिन वर्गणानिके समूहका नाम जघन्य स्पर्धक है। बहरि जघन्य वर्गतै दुणा अविभागप्रतिच्छेद युक्त वर्गनिका समूहरूप द्वितीय स्पर्धककी प्रथम वर्गणा हो है। बहुरि ताके ऊपरि एक एक अविभागप्रतिच्छेद अधिक क्रम लीएं जे वर्ग तिनिका समूहरूप वर्गणा यावत् होइ तावत् तिनि वर्गणानिका समूहरूप द्वितीय स्पर्धक हो है। जैसे ही तृतीय चतुर्थादि स्पर्धककी प्रथम वर्गणाके वर्गविषै तो जघन्य स्पर्धकतै ( जघन्य स्पर्धककी प्रथम वर्गणाकै वर्गनिके समूहत) तिगुणे चौगुणे आदि अविभागप्रतिच्छेद जानने । बहुरि इहां सर्व परमाणूनिका प्रमाण ऊपरि पूर्वोक्त एक एक अधिकका क्रम जानना । सो असा विधान यावत् सर्व परमाणू संपूर्ण होंइ तावत् जानना । बहुरि इहां सर्व परमाणनिका प्रमाणमात्र तो द्रव्य है अर वर्गणानिका प्रमाणमात्र अनंतप्रमाण लीएं स्थिति है अर अनुभागसंबंधी यथासंभव अनंतप्रमाण लीएं गुणहानि अर नाना गुणहानि अर अन्योन्याभ्यस्तराशि अर दो गुणहानि है । सो इनिकौं स्थापि तहां 'दिवढगुणहाणि भाजिदे पढमा' इत्यादि आगे कहिए है सो विधान तातै प्रथमादि गुणहानिनिका प्रथकादि वर्गणानिवि वर्गनिका प्रमाण ल्यावना। असी वर्गणा एक स्पर्धकविर्ष जितनी पाइए ताका नाम एक स्पर्धक वर्गणाशलाका है। बहरि एक गुणहानिविर्षे जेता स्पर्धक पाइए। तिनिका नाम एक गुणहानि स्पर्धकशलाका है । अझै अविभागप्रतिच्छेदनिका समूह वर्ग हैं, वर्गनिका समूह वर्गणा है, वर्गणानिका समूह स्पर्धक है, स्पर्धकनिका समूह गुणहानि है। गुणहानिका प्रमाण सोई नाना गुणहानि है असा जानना । सो यह कथन गोम्मटसारविर्षे भी है तथा इहां भी आगै नीके कहिएगा ।
बहरि इन प्रथमादि सार्धकनिकी रचना ऊपरि ऊपरि करिए है, तातै प्रथमादि पहिले स्पर्धकनिकौं नीचले स्पर्धक कहिए । अर पिछले स्पर्धकनिकौं ऊपरले स्पर्धक कहिए। बहरि पूर्वोक्त विधानतें प्रथमादि स्पर्धकनिविष क्रमतें परमाणूनिका प्रमाण तो घटता घटता है अर अनुभाग बंधता बंधता है। तहां प्रथमादि सर्व स्पर्धकनिका च्यारि विभाग करिए है ते घातियानिका तौ लता दारु अस्थि शैलसमान अर अप्रशस्त अघाति
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