Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri
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श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरिचरित्रम्
।। ५७ ।।
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मुकुटप्रोद्भासिरत्नांशुभिः। दीप्रास्थिपुनर्भवं वितरणे स्वः शाखिसाम्यङ्गतं, प्राचार्य जिनदत्तसूरिमनघं नौमीड्यवर्यं प्रभुम् ॥ ७७ ॥ ( त्रोटकम् ) – जिनचन्द्रममुं समशास्त्रविदं, जिनधर्मविकाशकश्विरम् । भवरोगमहौषधदानकरं, प्रणमामि सदा तमभीष्टदुहम् ॥ ७८ ॥ ( माहिनी ) - - जिनपतिवरसूरिः सर्वशास्त्रप्रवीणः, सुरतरुरिव लोके कामितैकप्रदित्सुः | अतुलवलयशोभिः शोभमानोऽत्र योऽभूत्, तमनिशमहमीडेऽचिन्त्यमाहात्म्यमेनम् ॥ ७९ ॥ ( पश्चचामरम् ) -- जिनेश्वरं प्रणौम्यहं सुतेजसं जगद्गुरुं, समस्तसूरिमण्डलेऽद्वितीयभासुरं प्रभुम् । परोपकारिताऽऽदिभिर्विशिष्टसद्गुणैः श्रितं सदा स्वकी यकर्मणि प्रदक्षतामुपागतम् ॥ ८० ॥ ( उपजातिः ) -- जिनप्रबोधं यमिनां वरिष्ठं दिक्षु प्रसारिप्रचुराऽवदातम् । यशश्चयं विभ्रतमाश्वर्यै, शास्त्रेष्वभिज्ञं विविधेषु नौमि ॥ ८१ ॥ ( त्रोटकम् ) -- जिन चन्द्रमपास्त कषायगणं, बहुल प्रतिबोधित - भव्यजनम् । सदनन्तपप्रतिपित्सुममुं परिणौमि महान्तमनङ्गजितम् ॥ ८२ ॥ ( मालतीवृत्तम् ) -- जिनकुशलं घनशास्त्रकोविंद, जगति जनाधिकबोधकारकम् | अनुपमकीर्तिलता-सुवेष्टितं, सुधियममुं परिणौमि सर्वदा ॥ ८३ ॥ ( प्रमिताक्षरावृत्तम् ) -- जिनपद्मसूरिमनघं जयिनं, वसुधा-प्रसिद्ध - बहुकीर्ति-कलम् । सकलागमज्ञमतुलं तपसा, परिचिन्तयामि सततं हृदये ॥ ८४ ॥ जिनलब्धिरिमतिधीरधियं, जनता-सुपूज्य - चरणाजयुगम्। (परितोदधामि हृदयाब्जदले ) क्षमता-सुधारस - निमग्नतरम् ॥ ८५ ॥ सुजना - म्बुजवजविकाश रविं भविनां भवाब्धितरणे तरणिम् । यमिनां वरिष्ठजिनचन्द्र गुरुं, परिणौमि सूविरमीडयतमम् ॥ ८६ ॥
( उपजाति: ) - जिनोदयाऽऽख्यं वरसूरिराजं जितेन्द्रियं तत्यविदां वरिष्ठम् । यशस्विनामादिममेनमीडे, कुबुद्धिकातारदवानलं हि ॥ ८७ ॥ ( तोटकम् ) - जिनराजमगाधमतिं गुणिनं, कलुषौघमहीधपत्रिं सुविदम् । शरणागतवत्सलमृद्धिकरं,
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प्रथमः
सर्गः ।
॥ ५७ ॥

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