Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri

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Page 21
________________ San Mahavia Ardhana Kenda www.kobatirtm.org Acharys 5 kanssagan Gyanmand श्रीजिनकृपाचन्द्र सरिचरित्रम् प्रथमः सर्गः। ॥६०॥ CROCHACAX | जनपण्यगणीश्वर एपः ॥ १४० ।। (तामरसम)--जयकुशलः सुविनीतसुशिष्यः, समभवदस्य सुवाचकमुख्यः । सकल| जिनाऽऽगम-पाठन-शक्त:, क्षितितल-गण्य-गणीश्वर एपः ॥ १४१॥ (द्रुतविलंबितम् )-अचलबर्द्धन-शिष्यवरोऽभवत्, सकल-शाख-विचारण-दक्षिणः । प्रथित-वाचक-वृन्द-शिरोमणि-गणभृदस्य गरिष्ठगुरोरयम् ।। १४२ ॥ (उपजातिः) एतस्य शिष्यो जिनहंसनामा, गणी सुधर्मा सदसि प्रवक्ता । यशस्करो भूतिददो बभूवो-पाध्यायवृन्दाऽय्यतमो जितात्मा ॥ १४३ ।। एतत्क्रमाऽम्भोज-युग-द्विरेफ-माणिक्यमूर्तिर्गणभृद्धभूवान् । शास्त्राब्धि-पारीण उदारबुद्धिः, सद्वाचकाऽग्रेसर आप्तवक्ता ॥१४४॥ श्रीज्ञानमूर्तिर्गणभृत्प्रजजे, शिष्यस्तदीयो यशसा गरीयान् । जिताऽऽन्तरारिर्ममता-विमुक्तो-पाध्याय उष्णांशु-समप्रभासः ॥१४५॥ श्रीभावहर्षी गणभृद्बभूवो-पाध्याय उच्चैर्यशसाऽभिरामः । सुदक्षिणः सर्वकलासु तस्य, प्रशस्य-शिष्यः परमार्थदर्शी ॥ १४६ ।। (प्रमुवितवदना)-अमर-विमल-शिष्य-वर्यो गणी, समजनि-सम-वाचकाग्रेसरः । तदतुल-पदपद्म-भृङ्गोपमो, जगदुदित-सुकीर्ति-वल्ल्यावृतः ॥ १४७॥ (द्रुतविलंबित्तम )-अमृतसुन्दर उचल-कीर्तिमान् , समजनिष्ट गणी बरवाचकः । तदनुकूल-विनेयवरः प्रधी-रधिकविद्य उपास्यतमः कृती ॥ १४८ ।। (तोटकम् )--अमुकस्य सुशिष्य-महामतिमान् , निरवद्य सुविद्य उदारयशाः। महिमायुत-हेमगणी समभूत् , प्रभुरेष सुवाचक ईडयतमः ॥ १४९ ॥ (उपजाति:)--एतस्य शिष्यत्वमगादनल्प--तेजा महौजा गणिवाचकोऽसौ । मान्यः समेषां जयकीर्तिनामा, वशीकृतात्मा शशि-शुभ्रकीर्तिः ॥ १५० ॥ प्रतापसौभाग्य-गणी बभूवो-पाध्यायभाक् तस्य गरिष्ठकीर्तेः। शिष्यो महीयानुदधिर्गुणानाम् , अनेक-शाखेषु कृतश्रमोऽसौ ॥ १५१ ।। 454 का॥६०॥ For Private And Personal use only

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