Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri

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Page 45
________________ SinMahavir.jan AradhanaKendra www.kobatirtm.org Acharys su kalis Gyanmar राद्वितीय सर्गः। श्रीजिनकपाचन्द्र सरिचरित्रम् SAISAX** ॥७२॥ FACACHAR (द्रुतविलम्बितम् )-जगडियामथ शिष्यदलैः सम, समधिगम्य जिनेशमलोकत । विहरमाण इतः पुरमाण्डवी-मुपगतः प्रतिबोधमदानृणाम् ॥ २२० ।।( तोटकम् )--भृगुकच्छपुरीमयमागतवान् , प्रविलोकितवानिह तीर्थपतिम् । अभवच्च विशुद्धमतिर्मुदभा-गयमुज्वल-शीलचरित्रधरः ॥ २२१ ॥ (उपजातिः)-ततश्चलनेष समाजगाम, पालेजपुर्यामवनी पुनानः । बावन्द्यमानः सकलैश्व पौर-ख्यिानमत्राऽददताऽतिरम्यम् ॥ २२२।। आमोद-जम्बूसरपचनेऽगात्, पुरद्वयेऽशेषजनैरवन्दि । धर्मोपदेशाऽमृतपायनेन, सन्तर्पयामास जनानशेषान् ।। २२३ ॥ आयिष्ट गन्धारपुरं ततोऽसौ, बेण्डाऽऽदिवाद्यैर्नेगरी प्रविश्य । प्रदत्तवान् धार्मिकदेशनांस, प्राबोधि तचं जनता बशेषा ।।२२४॥ कावीस्थसत्तीर्थमुपेत्य यात्रां, विधाय चागात्पुरि पादरायाम्। वितत्य रम्योत्सवमेनमन्तः, प्रावेशयत्संघजनोऽतिहृष्टः।। २२५॥ (बंशस्थवृत्तम्)-सुधामयीमस्य सुदेशनामलं, घसार-संसारविरागकारिणीम् । मुनीन्द्रदुम्प्रापविमुक्तिहारिणी, प्रशंसयामास निशम्य सद्गुरुम् ॥ २२६ ॥ (पश्चचामरम् )--दरापराभिधां पुरीमसावियाय शिष्ययुक, समागतं पुराबहिर्गुरुं हम पुरीजनः । महानकाऽऽदिवादन-स्वनैर्जयोचरावकै-रवीविशत्पुरान्तरं सुतोरणाऽऽदिसञ्जितम् ॥ २२७ ॥ ददावसौ सुदेशनां घनाऽऽरवोपमस्वन-रिहाऽऽगतं गुरुं ज्वरस्तमाशु गाढमग्रहीत् । अतो विहर्तुमक्षमः कियदिनानि तस्थिवान्, अचीकरद्भिपग्वरैस्तदौषधं महाजनः ॥ २२८ ॥ (शार्दूलविक्रीडितम् )-शास्त्रार्थस्य चिकीरदादिह तदा पछ्यासशाली सक, आनन्दाऽऽदिकसागरस्तदवर्षि पौषी परां पूर्णिमाम् । एतस्मात्तदवस्थ एष चलितः श्रीमडोदापुरः, पश्चक्रोशविद्रवर्तिनगरीमागत्य तस्थौ गुरुः ।। २२९ ॥ ( उपजातिः )-शास्त्रार्थ-पाम-व्यथितस्य तस्या-ऽऽनन्दोदघेरागमनप्रतीक्षाम् । कुवर्न स्थितस्तत्र समस्तवादि ॥७२॥ For Private And Personal use only

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